हालांकि, सूत्रों के मुताबिक बीसीसीआई 70 प्रतिशत कुल आमदनी राज्य संघो को भेजता है। वो खिलाड़ियों को कुल आय के 30 प्रतिशत में से 26 प्रतिशत देता है जबकि फॉर्मूले के मुताबिक उसे 100 प्रतिशत कुल आय का 26 प्रतिशत खिलाड़ियों को देना चाहिए। जो भी आय बचती है, उसका इस्तेमाल स्टेडियम निर्माण, और बोर्ड की अन्य गतिविधियों में उपयोग करना होती है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति ने यह भी पाया कि खिलाड़ियों को स्पांसरशिप अधिकारों और आईसीसी इवेंट्स में हिस्सा लेने के छोटे प्रतिशत का ही भुगतान किया जाता है। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘सीओए इस फॉर्मूले को लंबे समय से बदलने की कोशिश कर रहा है ताकि खिलाड़ियों को ज्यादा हिस्सा मिले, लेकिन कोई सदस्य इसमें रूचि नहीं दिखा रहा है। क्रिकेटर्स को छोटा हिस्सा मिल रहा है। सबसे बड़ी परेशानी ये है कि बोर्ड सदस्य जो 70 प्रतिशत खर्च कर रहे हैं उसकी जानकारी सीओए से साझा नहीं कर रहे हैं। जब भी सीओए इस मामले में हस्तक्षेप करता है तो वो कहते हैं कि यह उनके रुपए हैं।’
पिछले कुछ वर्षों में मीडिया अधिकारों की कमाई में भारी इजाफा हुआ है, लेकिन क्रिकेटर्स को इसका पर्याप्त मुनाफा नहीं मिला है। भारतीय टीम के कोच होने के नाते कुंबले ने इस फोर्मुले को लागू करने की बात कही थी, लेकिन बीसीसीआई की सामान्य इकाई को ये रास नहीं आया।
ये भी जानकारी मिली है कि बीसीसीआई की सामान्य इकाई अगर पर्याप्त भुगतान करे तो क्रिकेटर्स करोड़पति बन सकते हैं। मगर उनका कहना है कि विरत कोहली जैसे खिलाड़ी साल में बीसीसीआई, आईपीएल और अन्य अनुबंधों से 200 करोड़ रुपए तक कमाई करते हैं। हालांकि, आईपीएल में खेलने वाले 100 से अधिक क्रिकेटर्स हैं, जिसमें से सिर्फ 15 से 20 क्रिकेटर ही करोड़पति क्लब का हिस्सा हैं बल्कि अन्य क्रिकेटर्स 10 से 20 लाख रुपए की श्रेणी में शामिल हैं।
सूत्रों ने कहा कि बीसीसीआई इस साल क्रिकेटरों के लिए अभी इसी फोर्मुले को जारी रखेगी, जिसे बोर्ड की आर्थिक समिति द्वारा औपचारिक रूप से हरी झंडी मिलना बाकी है। मगर सीओए इससे राजी नहीं है। सूत्रों के मुताबिक सीओए चाहता है कि नई ‘निधि वितरित नीति’ को औपचारिक रूप से स्वीकृत किया जाए जो क्रिकेटरों का ध्यान रखे और वेतन बढ़ोतरी की उनकी मांग को माने।