जानिए शहर में ऐसी कई बेटियां हैं जो बेटे का फर्ज निभाकर तोड़ दिया समाज का मिथक

माता या पिता के अंतिम संस्कार के लिए एक धारणा है। ऐसा कहा जाता है कि अंतिम संस्कार का अधिकार पुत्र का होता है। यदि पुत्र नहीं तो ये अधिकार परिवार के किसी अन्य पुरुष सदस्य को दे दिया जाता है। शहर में ऐसी कई बेटियां हैं जो बेटे का फर्ज निभाती हैं। इन्होंने न सिर्फ पिता की अर्थी को कांधा दिया, बल्कि मुखाग्नि देकर उनका अंतिम संस्कार भी किया। ऐसी ही कुछ बानगी पेश करती ये रिपोर्ट…।

पिता मेरे, अंतिम संस्कार कोई दूसरा क्यों करे?

फजलगंज में चेन फैक्ट्री चौराहा के पास रहने वाले पुरुषोत्तम दास मुलानी का पिछले दिनों निधन हो गया था। कोई पुत्र न होने की वजह से उनकी पुत्री निकिता ने अंतिम संस्कार करने का निर्णय लिया। इस फैसले में उनकी बुआ ने पूरा साथ दिया। निकिता के मुताबिक बड़ा अजीब नियम है कि पिता को मुखाग्नि बेटा ही देगा। पिता मेरे हैं, अंतिम संस्कार कोई दूसरा क्यों करे।

पिता का संकल्प पूरा किया

शांति नगर निवासी प्रेम नारायण द्विवेदी ने वर्ष 2012 में अपनी पत्नी के साथ देहदान का संकल्प लिया था। पिछले वर्ष एक जून को उनका निधन हो गया। चारों बेटियों अनुश्री, आयुषी, रिद्धी, वृद्धि ने जीएसवीएम मेडिकल कालेज जाकर उनके पार्थिव शरीर का देहदान किया। बड़ी बेटी अनुश्री के मुताबिक कोई भाई नहीं है तो क्या, हम चारों बहनें ही पापा का संकल्प पूरा करने के लिए काफी हैं।

तीन बहनों ने मिलकर दी थी मुखाग्नि

कृष्णा नगर निवासी चंद्रप्रकाश भाटिया का निधन 17 जून 2017 को हुआ था। उन्हें उनकी पुत्री हर्षा, पूजा व रंगोली ने मुखाग्नि दी थी। पूजा के मुताबिक वे संयुक्त परिवार में रहती हैं। पापा, दो चाचा, दोनों चाचा के चार बेटे सभी साथ में हैं, लेकिन पापा का निधन हुआ तो तीनों बहनों ने उन्हें मुखाग्नि देने का निर्णय लिया। परिवार के लोगों ने भी इस निर्णय को सराहा।

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