कहते हैं कि लिखावट लोगों के व्यक्तित्व का प्रतिबिंब होती है। वर्तमान में नौकरी देने वाली संस्थाएं भी लोगों की लेखनी को देखकर ही उनके प्रोफाइल को बेहतर तरह से समझने का प्रयास करती हैं। केवल यही नहीं, बल्कि मनोचिकित्सक भी अपने मरीजों के बेहतर इलाज के लिए उनकी लिखावट का आकलन करने की कोशिश करते हैं। आइए जानते हैं मनोचिकित्सक डॉ. भावना बर्मी का क्या कहना है।
इस पर हुए अध्ययनों से पता चलता है कि लिखावट न केवल आपके गुणों और कमियों को दिखाता है, बल्कि आपकी योग्यता, अयोग्यता और सीखने के दौरान होने वाली परेशानियों को भी दर्शाती है। अध्ययनों के मुताबिक, हस्तलिपि या लिखावट की कमियां एक तरह की विकलांगता की ओर इशारा करती हैं। दिमागी तौर पर कमजोर बच्चे लिखने में भी कमजोर होते हैं। ये समस्याएं ग्राफोमोटर, विजुअल मोटर या अवधारणात्मक परेशानियों का रूप हो सकती हैं।
लेखन एक जटिल प्रक्रिया है। लेखन में मानसिक और शारीरिक स्तर दोनों स्तर शामिल हैं। इसमें शारीरिक स्तर को अच्छा मोटर गुण कहते हैं। इसके तहत मांसपेशियों की निपुणता, पेंसिल पर पकड़ और लेखनी मुद्रा आती है। ज्ञान-संबंधी स्तर में शब्दों की सही बनावट, दृश्य-मोटर धारणा, धाराप्रवाह, गति, वर्तनी और अभिव्यक्ति आती है। कोई भी बच्चा या व्यक्ति लिखने से बचना चाहता है, तो यह उसकी एक प्रकार की अयोग्यता या परेशानी की तरफ इशारा है।
शारीरिक सीमाओं का आकलन करते समय हमेशा इन संकेतों पर ध्यान जरूर रखना चाहिए कि बच्चे की पेंसिल पकड़ने की मुद्रा सही है या गलत, अक्षर या नंबरों का आकार, अक्षर उल्टे लिखता है या सीधे, अक्षरों की बनावट, ब्लैकबोर्ड से कॉपी करने या किसी और से कॉपी करने में परेशानी आदि।
दृश्य-मोटर गुण और शारीरिक कमियों को इलाज से दूर किया जा सकता है। इसके तहत बच्चे को अक्षर अभ्यास कराया जा सकता है और उनके क्रम समझाए जा सकते हैं। छह से सात साल के बाद भी यदि बच्चा अक्षर या उसके क्रम में गलतियां करता है, तो यह उसके धीमे विकास की ओर एक इशारा है। दूसरी कक्षा के बाद किसी भी तरह के अक्षरों में या उसके क्रमांक को लिखने में समस्या है, तो इसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता।
बच्चे को अगर बोर्ड या किताब से कॉपी करने में परेशानी आ रही है, तो उसे आंखों के डॉक्टर के पास लेकर जरूर जाएं, क्योंकि कभी-कभी यह दृश्य संबंधी समस्या भी हो सकती है, जिसमें बच्चा किताब में लिखे शब्दों को साफ-साफ नहीं देख पाता।
लेखनी विविधताओं वाली प्रक्रिया है, इसलिए जिस बच्चे को विचार व्यक्त करने या उच्चारण करने में परेशानी महसूस होती है, उसे लिखने में संघर्ष करना पड़ सकता है। यदि हम चिकित्सा व व्यक्तिगत शिक्षण रणनीतियों की सहायता लें, तो यह बच्चे के विकास के लिए अच्छा है।
आपके अक्षरों का आकार बता सकता है कि आप अंतर्मुखी हैं या बहिर्मुखी। अक्षरों पर दबाव व्यक्ति के स्वास्थ्य और इच्छाशक्ति की पहचान भी कराता है। भारी दबाव स्वस्थ, सशक्त व्यक्तित्व को दर्शाता है और हल्का दबाव कमजोर व्यक्तित्व को दर्शाता है। इसके अलावा तिरछे अक्षर हमें किसी व्यक्ति की सुशीलता की पहचान कराते हैं।