चाणक्य नीति के अनुसार प्रत्येक मनुष्य जीवन में सफलता प्राप्त करना चाहता है. उसकी कामना रहती है सुख-समृद्धि, धन और वैभव की देवी की लक्ष्मी जी की कृपा सदैव बनी रहे. चाणक्य की गिनती भारत के श्रेष्ठ विद्वानों में की जाती है. आचार्य चाणक्य की चाणक्य नीति के ये श्लोक बहुत महत्वपूर्ण है. इनके बारे में आइए जानते हैं-
अधीत्येदं यथाशास्त्रं नरो जानाति सत्तमः ।
धर्मोपदेशं विख्यातं कार्याऽकार्य शुभाऽशुभम् ।।
चाणक्य नीति के इस श्लोक का अर्थ है कि जो व्यक्ति शास्त्रों के नियमों का निरंतर अभ्यास करके शिक्षा प्राप्त करता है उसे सही, गलत और शुभ कार्यों का ज्ञान हो जाता है. ऐसे व्यक्ति के पास सर्वोत्तम ज्ञान होता है. यानि ऐसे लोग जीवन में अपार सफलता प्राप्त करते हैं.
प्दुष्टाभार्या शठं मित्रं भृत्यश्चोत्तरदायकः ।
ससर्पे च गृहे वासो मृत्युरेव नः संशयः ।।
चाणक्य नीति के इस श्लोक का अर्थ है कि दुष्ट पत्नी, झूठा मित्र, धूर्त सेवक और सर्प के साथ कभी नहीं रहना चाहिए.ये ठीक वैसा ही है, जैसे मृत्यु का गले लगाना.
आपदर्थे धनं रक्षेद्दारान् रक्षेध्दनैरपि ।
नआत्मानं सततं रक्षेद्दारैरपि धनैरपि ।।
चाणक्य नीति के अनुसार मनुष्य को आने वाली मुसीबतों से बचने के लिए धन की बचत करना चाहिए. उसे धन-सम्पदा त्यागकर भी पत्नी की सुरक्षा करनी चाहिए. लेकिन बात यदि आत्मा की सुरक्षा की आ जाए तो उसे धन और पत्नी दोनों को तुक्ष्य समझना चाहिए.
यस्मिन् देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवः ।
न च विद्यागमऽप्यस्ति वासस्तत्र न कारयेत् ।।
चाणक्य नीति का यह श्लोक यह बताने का प्रयास करता है कि उस देश में नहीं रहना चाहिए जहां सम्मान न हो. रोजगार के साधन न हों. वहां पर भी मनुष्य का नहीं रहना चाहिए जहां आपका कोई मित्र न हो. उस स्थान का भी त्याग करना चाहिए जहां पर ज्ञान न हो.
जानीयात् प्रेषणे भृत्यान् बान्धवान् व्यसनागमे ।
मित्रं चापत्तिकाले तु भार्यां च विभवक्षये ।।
चाणक्य नीति के इस श्लोक के अनुसार सेवक यानि नौकर की परीक्षा तब होती है जब बुरा वक्त आता है. रिश्तेदार की परीक्षा तब होती है जब मुसीबत में घिरे जाएं. मित्र की परीक्षा संकट के समय होती है. पत्नी की परीक्षा तब होती है जब विपदा आन पड़ी हो.