खबर के नाम पर लाइन क्रॉस कर रहे चैनलों पर लगातार विचार-विमर्श चल रहा है. देश की कुछ टॉप विज्ञापन कंपनियों ने चैनलों को इस तरह के माहौल से बचने की नसीहत भी दी है. वहीं, न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA) के चेयरमैन रजत शर्मा ने इस मसले पर कहा है कि खबर के नाम पर कुछ चैनल ड्रामा दिखा रहे हैं जो न सिर्फ न्यूज चैनलों के हित के खिलाफ है बल्कि समाज के लिए भी सही नहीं है.
वेबसाइट को दिए एक इंटरव्यू में एनबीए चेयरमैन रजत शर्मा ने कहा, ”हमने रिपोर्टर्स के वीडियो देखे हैं जो गवाहों को परेशान कर रहे हैं, एजेंसियों ने जिन्हें पूछताछ के लिए बुलाया है उनके पीछे भाग रहे हैं, यहां तक कि ऑन एयर अपशब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं. किसी से छिपा नहीं है कि ये कौन कर रहा है. दुनिया भर में, हमने विज्ञापनदाताओं और प्रतिष्ठित ब्रांडों को ऐसे नफरत फैलाने वालों से समर्थन वापस लेते देखा है.” रजत शर्मा के इंटरव्यू के प्रमुख अंश-
सवाल: हाल ही में NBA ने सुप्रीम कोर्ट को दिए हलफनामे में मांग की है कि उसे ज्यादा ताकत मिलनी चाहिए ताकि जो एनबीए के सदस्य चैनल नहीं हैं उन पर भी लगाम लगाई जा सके. ये कितना फायदेमंद साबित हो सकता है?
जवाब: हम NBA के लिए ज्यादा ताकत की मांग नहीं कर रहे हैं, हम चाहते हैं कि सभी न्यूज चैनल NBSA(न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड्स एसोसिएशन) द्वारा निर्धारित गाइडलाइंस का पालन करें. NBA और NBSA दो अलग बॉडी हैं. एनबीएसए के पास न्यूज ब्रॉडकास्टर्स के लिए स्पष्ट और सख्त आचार संहिता है. सालों से एनबीएसए ने न्यूज चैनलों को बेहतर बनाने में मदद की है. NBSA अब जहरीले कंटेंट को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. लेकिन समस्या ये है कि जो चैनल स्कैनर में हैं वो एनबीए के सदस्य ही नहीं हैं. वे एनबीएसए के दायरे में नहीं आते हैं. हम उन्हें एनबीए का सदस्य बनने के लिए भी नहीं कह रहे हैं. हम सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से बस ये मांग कर रहे हैं कि सभी न्यूज चैनलों के लिए यह अनिवार्य होना चाहिए कि वो NBSA की गाइडलाइंस का पालन करें.
सवाल: आपने अपने हाल ही के इंटरव्यू में कहा था कि कुछ चैनल पूरी इंडस्ट्री का नाम खराब कर रहे हैं, लेकिन क्या ऐसा नहीं है कि सभी चैनल आखिरकार उन ‘कुछ चैनलों’ से कम्पटीशन के जाल में फंस रहे हैं?
जवाब: एनबीए और गैर-एनबीए सदस्य चैनलों के बीच बहुत ही स्पष्ट फर्क है. निश्चत तौर पर एनबीए चैनलों को कंपीट करना है लेकिन वो NBSA की गाइडलाइंस का उल्लंघन नहीं कर सकते. आचार संहिता का पालन करना आसान नहीं है, इसलिए एनबीए चैनल्स को हमेशा अलर्ट रहने की जरूरत है. लेकिन आप उन न्यूज चैनलों के बारे में क्या करते हैं जो गलती करते हैं. जज द्वारा माफी मांगने के लिए कहा जाता है, लेकिन वो आदेशों का पालन करने से इनकार करते हैं. फिर वे एनबीए से बाहर निकलते हैं. इसलिए हम कह रहे हैं कि ऐसे चैनल अपने ग्रुप्स, संगठन या गैंग का गठन कर सकते हैं, लेकिन एनबीएसए कोड का पालन करना सभी के लिए अनिवार्य होना चाहिए.
सवाल: क्या NBA सदस्यों को एडवर्टाइजर्स के लिए सुरक्षित माहौल नहीं देना चाहिए?
जवाब: एडवर्टाइजर्स को उन चैनलों के बीच अंतर करना चाहिए जो गैर-जरूरी रूप से आक्रामकता दिखाते हैं और न्यूज के साथ गालियां और झगड़े को जगह देते हैं. एडवर्टाइजर्स को ये फर्क करना चाहिए कुछ चैनल अटेंशन पाने के लिए हाई वोल्टेज ड्रामा करते हैं और निजता का उल्लंघन करते हैं. हमने रिपोर्टर्स के वीडियोज देखे हैं जो गवाहों का उत्पीड़न करते हैं, एजेंसियों द्वारा पूछताछ के लिए बुलाए गए लोगों के पीछे भागते हैं, यहां तक कि अपशब्द का इस्तेमाल भी करते हैं. ये बात किसी से छुपी नहीं है कि ऐसा कौन कर रहा है और हमने दुनियाभर में देखा है ऐसे ‘हेट मॉन्गर्स’ को सम्मानित विज्ञापनदाताओं ने सपोर्ट नहीं किया है.
सवाल: क्या NBA को विज्ञापनदाताओं की भावनाओं का ध्यान नहीं रखना चाहिए?
जवाब: एनबीए न केवल विज्ञापनदाताओं की भावनाओं का सम्मान करता है बल्कि उनसे ये भी अपील करता है कि नैतिकता और अनैतिकता के बीच फर्क करें. हम जानते हैं कि हाल ही में जिस तरह से न्यूज कवरेज की गई है उससे पूरी इंडस्ट्री की छवि को नुकसान पहुंचा है. कुछ चैनलों ने न्यूज के काम पर ड्रामा दिखाया है जो न सिर्फ इंडस्ट्री के लिए गलत है बल्कि समाज के लिए भी सही नहीं है. न्यूज चैनल और एडवर्टाइजर्स दोनों की देश के प्रति जिम्मेदारी है. हम कुछ लोगों को यह अनुमित नहीं दे सकते कि वो लोगों का टारगेट करें और हर दिन जहर उगलते रहें और बचे भी रहें.
सवाल: कुछ NBA सदस्य चैनल भी कारों के पीछे दौड़ते हुए देखे गए हैं और स्टूडियो को हाई वोल्टेज ड्रामे में उन्होंने बदल दिया है, ये कैसे सही है?
जवाब: अगर कोई भी NBA सदस्य चैनल इस तरह की प्रोग्रामिंग में शामिल है तो मुझे इस बात पर जरा भी शक नहीं कि उन्हें NBSA का सामना करना पड़ेगा.
सवाल: एक वक्त था जब विवाद की स्थिति में धर्म का नाम नहीं लिया जाता था, लेकिन अब खुलेआम इस्तेमाल हो रहा है. आरोपी जैसे लीगल टर्म भूल गए हैं, मौत को हत्या कहा जा रहा है. क्या इन सबके अब कोई मायने नहीं रह गए हैं?
जवाब: लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होने के नाते, हम देश के संविधान से बंधे हैं. NBA अपने किसी सदस्य को सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की इजाजत नहीं देता है और न ही दो समुदायों के बीच दूरियां पैदा करने की अनुमति देता है. जर्नलिस्ट आचार संहिता के दायरे में रहते हुए किसी मामले की जांच कर सकते हैं. NBSA की गाइडलाइंस न्यूज चैनलों को मीडिया ट्रायल की परमिशन नहीं देती हैं और न ही मौत को हत्या कहने की इजाजत देती हैं. न्यूज चैनल के लिए काम करने से कानून के उल्लंघन का लाइसेंस नहीं मिलता है.