बता दें कि दागी और दोषी नेताओं पर दायर की गई चुनाव आयोग की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट लगातार सुनवाई कर रहा है। मंगलवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि आपराधिक मामलों में जनप्रतिनिधियों के जुर्म साबित होने की औसत दर क्या है? अदालत ने ये भी पूछा कि क्या नेताओं पर चलने वाले ट्रायल को एक वर्ष में पूरा करने के उसके आदेश का प्रभावी ढंग से पालन हो सका है?वहीं इस दौरान पीठ ने याचिकाकर्ताओं से यह भी जानना चाहा कि ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट में जनप्रतिनिधियों के खिलाफ कितने मामले लंबित हैं? कितने जनप्रतिनिधियों पर जुर्म साबित होने के बाद प्रतिबंध लगे? पीठ ने कहा कि अगर उनके पास इससे संबंधित कोई डाटा है तो उसे पेश किया जाए। आंकड़े चुनाव आयोग से प्राप्त किए जा सकते हैं।
न्यूनतम शैक्षिक योग्यता और उम्र सीमा भी तय करने की मांग
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील दिनेश द्विवेदी ने कहा कि जनप्रतिनिधि भी अधिकारियों की तरह ही सरकारी नौकर हैं। अत: दोष साबित होने पर उन पर भी आजीवन प्रतिबंध लगना चाहिए। वहीं एक अन्य वकील कृष्णन वेणुगोपाल ने कहा कि दागी नेताओं की वजह से चुनाव की पवित्रता के साथ समझौता किया जा रहा है। याचिका में केंद्र और चुनाव आयोग को यह भी निर्देश देने को कहा गया है कि चुनाव के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता और अधिकतम आयु सीमा तय करें।
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