हर साल उत्तराखंड में चार धाम यात्रा आयोजित की जाती है। इन चाम धामों में केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनौत्री शामिल हैं। इस बार उत्तराखंड की चार धाम यात्रा 30 अप्रैल को अक्षय तृतीया से शुरू होगी। यात्रा के पहले दिन गंगोत्री और यमनोत्री के कपाट खुलेंगे। इसके बाद 2 मई को केदारनाथ और 4 मई को बद्रीनाथ के कपाट भी खुल जाएंगे। इन 4 धामों में शामिल बद्रीनाथ का महत्व अनेक धर्म ग्रंथों में मिलता है। इससे जुड़ी कईं कथाएं भी हैं जो इस तीर्थ स्थान को और भी खास बनाती हैं। जब भी बद्रीनाथ के कपाट खोले जाते हैं तो अनेक परंपराओं का पालन किया जाता है। आगे जानिए बद्रीनाथ से जुड़ी कुछ खास बातें…
3 चाबी से खुलते हैं बद्रीनाथ धाम के कपाट
हर साल उत्तराखंड की 4 धाम यात्रा के दौरान सबसे अंत में बद्रीनाथ धाम के कपाट खोले जाते हैं। लेकिन ऐसा करना आसान नहीं होता। बद्रीनाथ धाम के कपाट 1 नहीं बल्कि 3 चाबी से खुलते हैं। ये तीनों चाबियां अलग-अलग लोगों के पास होती है। पहली चाबी उत्तराखंड के टिहरी राज परिवार के राज पुरोहित के पास, दूसरी बद्रीनाथ धाम के हक हकूकधारी मेहता लोगों के पास और तीसरी हक हकूकधारी भंडारी लोगों के पास होती है।
सबसे पहले कौन करता है बद्रीनाथ में पूजा?
हर साल जब भी बद्रीनाथ धाम के दरवाजे खोले जाते हैं तो मंदिर में सबसे पहले रावल (पुजारी) प्रवेश करते हैं और गर्भगृह में जाकर भगवान की प्रतिमा के ऊपर लिपटे हुए खास कपड़ों को हटाते हैं साथ ही पूरे विधि-विधान से पूजा अन्य प्रक्रियाएं पूरी करते हैं। बद्रीनाथ धाम में सबसे पहली पूजा रावल ही करते हैं। इसके बाद ही मंदिर आम दर्शनार्थियों के लिए खोला जाता है। ये परंपरा हजारों सालों से चली आ रही है।
मूर्ति देती है खुशहाली के संकेत
हर साल नवंबर के महीने में यानी शीत ऋतु की शुरूआत में बद्रीनाथ मंदिर के कपाट बंद किए जाते हैं उस समय भगवान की प्रतिमा पर घी का लेप लगाया जाता है और इसके ऊपर खास कपड़ा लपेटा जाता है। इसके बाद जब मंदिर के कपाट खुलते हैं और भगवान की प्रतिमा के ऊपर से कपड़ा हटाते हैं तो तो ये देखा जाता है कि मूर्ति घी से पूरी तरह लिपटी है या नहीं। मान्यता है कि अगर मूर्ति घी से लिपटी है तो देश में खुशहाली रहेगी और अगर घी कम है तो सूखा या बाढ़ की स्थिति बन सकती है।
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