भैरव रात के देवता माने जाते हैं. इनकी महिमा कई धर्म शास्त्रों में मिलती है. इस बार काल भैरव की दिव्य उपासना की तिथि यानि कालाष्टमी तिथि 10 नवंबर को है. इनकी पूजा का विशेष समय आधी रात को होता है जो इंसान भूत-प्रेत की बाधा या तांत्रिक क्रियाओं से परेशान हैं उन्हें तमाम कष्टों और परेशानियों से मुक्त करती है. इस दिन शिव के कालभैरव स्वरूप की उपासना से जीवन के सभी विवाद, सभी परेशानियां अपने आप ही शांत होने लगती हैं. जानकारों की मानें तो इस तिथि पर काल भैरव की उत्तम उपासना से मानव जीवन के तमाम उलझनों का बड़ी ही सरलता से अंत किया जा सकता है.
कालाष्टमी पर कैसे करें भैरव पूजा?
– शाम के समय भैरव जी की पूजा करें.
– इनके सामने एक बड़े से पात्र में सरसों के तेल का दीपक जलाएं.
– इसके बाद उड़द या दूध से बने पकवानों का भोगल अर्पित करें.
– विशेष कृपा के लिए भैरव जी को शरबत या सिरका भी अर्पित करें.
– तामसिक पूजा करने पर भैरव देव को मदिरा भी अर्पित की जाती है.
– प्रसाद अर्पित करने के बाद भैरव जी के मन्त्रों का जाप करें.
भैरव का स्वरूप भयानक ज़रूर है लेकिन सच्चे मन से जो भी इनकी उपासना करता है उसकी सुरक्षा का भार स्वयं उठाते हैं और अपने भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं लेकिन दूसरी ओर अगर भैरव नाराज़ हो जाएं तो अनिष्ट भी हो सकता है. इसलिए भैरव की उपासना में कुछ बातों के लेकर सावधान होना जरूरी है.
भैरव पूजन की सावधानियां
– गृहस्थ लोगों को भगवान भैरव की तामसिक पूजा नहीं करनी चाहिए.
– आमतौर पर बटुक भैरव की ही पूजा करनी चाहिए क्योंकि यह सौम्य पूजा है.
– काल भैरव की पूजा कभी भी किसी के नाश के लिए न करें.
– साथ ही काल भैरव की पूजा बिना किसी योग्य गुरु के संरक्षण के न करें.
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