शास्त्रों के अनुसार मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष अष्टमी को भगवान शिव कालभैरव रूप में प्रकट हुए थे इसलिए इस तिथि को व्रत एवं पूजा का विशेष विधान माना जाता है। तंत्र-मंत्र साधना के लिए कालभैरव की पूजा को बिशेष महत्व दिया जाता है। मान्यताओं के अनुसार कालभैरव की पूजा से जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और काल भय भी समाप्त होता है।
मान्यताओं के अनुसारा कालभैरव को प्रसन्न करने के लिए रात में काले कुत्ते को मीठा भोजन कराएं, यह शुभ माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार कालभैरव की पूजा करने से सभी शत्रुओं, नकारात्मक उर्जा, कष्ट और सभी पाप दूर हो जाते हैं। भैरव जी की पूजा उपासना से मनोवांछित फल मिलता है। कालभैरव का व्रत करने पर उनकी प्रिय वस्तु नींबू, अकौन के फूल, सरसों का तेल, नारियल, काले तिल, उड़द, पुए, मदिरा, सुगंधित धूप दान करें।
भारत में काल भैरव के कई मंदिर हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण हैं काशी के काल भैरव, यह मंदिर विश्वनाथ मंदिर से दो किमी दूरी पर हैं। काशी के बाद उज्जैन का काल भैरव मंदिर काफी प्रसिद्ध है। यहां काल भैरव को प्रसाद के रुप में केवल शराब चढ़ाते हैं। दिल्ली के विनय मार्ग पर भी काल भैरव का मंदिर है, इन्हें बटुक भैरव मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर की स्थापना पांडव भीमसेन ने की थी। नैनीताल के पास घोड़ाखाला का बटुकभैरव मंदिर काफी प्रसिद्ध है। यहां यह मंदिर गोलू देवता के नाम से जाना जाता है।
कालभैरव की पूजा करने से सभी क्रूर ग्रहों का प्रभाव खत्म हो जाता है। इनकी पूजा करने से किसी भी प्रकार का भय, जादू-टोना, भूत-प्रेत आदि का भय खत्म होता ऐसी मान्यताएं कहती हैं। साथ ही शत्रु से मुक्ति, संकट आदि पर विजय मिलती है। इनकी अराधना करने से शनि का प्रकोप भी शांत होता है। पूजा करते समय अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्, भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि!! इस मंत्र का जप करें।
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार भगवान ब्रह्मा और विष्णु में श्रैष्ठता को लेकर विवाद हुआ था। इस विवाद को सुलझाने के लिए सभी देवता भगवान शंकर के पास आए। सभी देवता और ऋषि-मुनियों ने शिव को ही श्रेष्ठ मान लिया। यह बात ब्रह्मा जी को अच्छी नहीं लगी और उन्होंने शिव को अपशब्द कह दिए। इससे भगवान शंकर को गुस्सा आया और इसी गुस्से से कालभैरव का जन्म हुआ। कालभैरव ने शंकर जी के अपमान करने पर ब्रह्माजी का सिर काट दिया। इसलिए ब्रह्मा चतुर्मुख हो गए।