एम्स के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग ने न्यूरोलॉजी, जनरल गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सर्जरी, एम्स के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल बायो डिजाइन व अन्य विभाग के साथ मिलकर स्टूल मैनेजमेंट किट तैयार की है। इसके ट्रायल के परिणाम बेहतर पाए जाने के बाद अब 30 जनवरी को एम्स के रिसर्च डे पर इसे प्रस्तुत किया जाएगा।
इलाज के दौरान बिस्तर पर शौच कर रहे मरीजों को एम्स का नया उपकरण संक्रमण से बचाएगा। अब तक इन मरीजों को अक्सर डायपर पहनाया जाता है। कई बार सामान्य कपड़े या बिस्तर लगाए जाते हैं। कई बार मरीज लंबे समय तक इस स्थिति में रहते हैं। ऐसे में उक्त मरीज को कई तरह का संक्रमण हो जाता है।
एक अध्ययन की माने तो ऐसे मरीजों में संक्रमण की संभावना 22 फीसदी तक बढ़ जाती है। समस्या को देखते हुए एम्स के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग ने न्यूरोलॉजी, जनरल गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सर्जरी, एम्स के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल बायो डिजाइन व अन्य विभाग के साथ मिलकर स्टूल मैनेजमेंट किट तैयार की है। इसके ट्रायल के परिणाम बेहतर पाए जाने के बाद अब 30 जनवरी को एम्स के रिसर्च डे पर इसे प्रस्तुत किया जाएगा। इस किट को लगाने के बाद मरीज को बार-बार डाइपर, कपड़ा, बिस्तर बदलने की परेशानी से मुक्ति मिल जाएगी। साथ ही संक्रमण होने का खतरा भी पूरी तरह से खत्म हो जाएगा।
मरीजों की देखभाल होगी बेहतर
विशेषज्ञों का कहना है कि बिस्तर पर शौच करने वाले मरीजों से अक्सर परिवार के सदस्य भी बचते हैं। वहीं अस्पताल में भी इसे लेकर अतिरिक्त खर्च करना पड़ता है। बार-बार बिस्तर, डायपर या कपड़े बदलने पड़ते हैं। इस उपकरण की मदद शौच की समस्या खत्म हो जाएगी। इससे मरीज की देखभाल भी बेहतर हो सकेगी और उसे जल्द ठीक होने में मदद मिलेगी।
संक्रमण का खतरा होगा कम
एम्स के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. गोविंद मखारिया ने कहा कि बिस्तर पर रहने वाले मरीजों के लिए मल त्याग करना एक बड़ी चुनौती है। यह न केवल संक्रमण को न्यौता देता है, बल्कि मरीज के सम्मान को भी ठेस पहुंचाता है। देश में हर साल हजारों मरीजों को लंबे समय तक बिस्तर पर रहकर मल का त्याग करना पड़ता है। यह किट मरीज के मलाशय से जुड़कर मल को सीधे बैग में पहुंचा देता है। इससे संक्रमण होने का खतरा पूरी तरह से खत्म हो जाता है। साथ ही मल त्यागने के बाद उसे साफ करने के लिए किसी पर निर्भर रहने की भी जरूरत नहीं रहती।
ऐसे करेगा उपकरण काम
इस उपकरण के एक हिस्से को शरीर के पिछले भाग में लगाया जाएगा। इस हिस्से में एक विशेष ट्यूब है जो शरीर के पिछले हिस्से (मलाशय) में जाकर मल के रास्ते को कवर करेगा। मरीज जब भी मल का त्याग करेगा। वह करीब डेढ़ मीटर पाइप के रास्ते बैग में जमा हो जाएगा। मल से बैग भर जाने के बाद आसानी से उस बैग को बदला जा सकता है। इस उपकरण को एक बार लगाने के बाद 29 दिनों तक इस्तेमाल किया जा सकता है।
शरीर पर मल लगने से होती है परेशानी
- 22% मरीजों में बढ़ जाता है संक्रमण
- 7 फीसदी मरीजों में संक्रमण से हो सकते हैं दूसरे रोग
- संक्रामक रोगों से बढ़ जाता है मौत का आंकड़ा
- आईसीयू में भर्ती मरीजों को ज्यादा दिन रहना पड़ता है भर्ती
बिस्तर पर शौच से होती हैं ये बीमारियां
- बेडसोर (दबाव अल्सर)
- मूत्र पथ संक्रमण (यूटीआई)
- त्वचा संक्रमण
- खून रिसाव के दौरान मल का मिलना