एंटी रोमियो दलः जानिए ऐसे ही पहले 3 अभियानों की हकीकत, क्या हुआ था अंजाम?

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन तमाम वादों पर जल्द से जल्द अमल किया जा रहा है जिन्हें भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी तमाम चुनावी सभाओं में बार-बार दोहराया करते थे। ऐसा ही एक वादा था सभी जिलों में एंटी रोमियो दल बनाने का, जिससे छेड़खानी और महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों को रोका जा सके। पहली नजर में देखें तो एंटी रोमियो दल का ख्याल अच्छा नजर आता है, लेकिन तुरंत ही यह सवाल भी दिमाग में कौंधता है कि पुलिस का यह खास स्कवायड वाकई में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों को रोक पाएगा या फिर शोषण का माध्यम बन कर रह जाएगी।

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एंटी रोमियो दलः जानिए ऐसे ही पहले 3 अभियानों की हकीकत, क्या हुआ था अंजाम?सवाल ये भी है कि क्या यह एंटी रोमियो दल उन पुलिसवालों की मानसिकता बदल पाएगा जो एक दूसरे के साथ घूमते लड़का-लड़की की दोस्ती में भी सवाल तलाशता है। जिसके लिए वह हर लड़का रोमियो से कम नहीं जो अपनी गर्लफ्रेंड या दोस्त के साथ किसी पार्क में बैठा दिख जाए, या फिर जिसे लड़का लड़की के उस साथ पर भी आपत्ति है जिस पर खुद उनके घरवाले भी सवाल न उठाते हों। ऐसे दो तीन किस्से मेरे जेहन में आज भी ताजा हैं जो रह रहकर पुलिस की उसी मानिसकता से मुझे वाकिफ कराते हैं। 

ऑपरेशनमजनू

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2005 में यूपी के मेरठ की एक घटना राष्ट्रीय पटल पर यूपी पुलिस की शर्मिदंगी का कारण बन गई। मेरठ के लालकुर्ती थाने की पुलिस ने महिला एसओ के नेतृत्व में नजदीक के कंपनी बाग में ऑपरेशन मजनूं नाम से एक अभियान चलाया। इस दौरान पार्क में पुलिस को जो भी प्रेमी जोड़ा बैठा मिला उसे दौड़ा दौड़ाकर पीटा गया।

युवक युवतियों को बेइज्जत किया गया। कुछ को हिरासत में भी ले लिया। परिजनों को थाने बुलाकर युवतियों को उनके सुपुर्द कर दिया गया और युवकों को जेल भेज दिया गया। मामला मीडिया में उछला तो इस पर जमकर हल्ला मचा, यहां तक की संसद में भी इस पर हंगामा हुआ। इस पर पुलिस घिर गई। हालांकि, महिला एसओ का तर्क था कि उसने युवतियों से छेड़खानी रोकने के लिए ये कदम उठाया था। लेकिन ऐसी शिकायत किसी ने नहीं की थी उन युवतियों ने भी नहीं जिन्हें पुलिस थाने लेकर आई थी। बाद में एसओ को सस्पेंड कर दिया गया।

साल 2011 में एक बार फिर उसी महिला अधिकारी के नेतृत्व में दिल्‍ली से लगते गाजियाबाद में भी ऐसा ही अभियान चला गया, दोबारा फिर पुलिस का शिकार वही प्रेमी जोड़ बने जो एक दूसरे से मिलने के लिए पार्क में आए थे। इस बार पुलिस ने उन्हें भी नहीं छोड़ा जिनकी नई-नई शादी हुई थी या जो अपनी मंगेतर से मिलने यहां आए थे। पार्क से बाहर महिला अधिकारी ने यह अभियान शहर में भी चलाया जहां एक साथ घूमते युवक युवती को भी पुलिस की प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा। एक युवक को तो तब पकड़ा गया जब वह अपनी बहन को स्कूल के गेट पर छोड़कर वापस लौट रहा था। पुलिस का दावा था कि वह छेड़खानी कर रहा था।

गुंडा दमन दल

साल 2010 में मेरठ में डीआईजी अखिल कुमार ने महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों को रोकने के लिए एक खास पहल की। उन्होंने पुलिस के कुछ मजबूत कद काठी वाले जवानों की एक टीम बनाकर उन्‍हें युवतियों से होने वाली छेड़छाड़ की घटनाओं को रोकने की जिम्मेदारी सौंपी। इसे नाम दिया गया ‘गुंडा दमन दल’। 
डीआईजी की इस पहल की सभी जगह तारीफ हुई। शुरूआत में एक फोन कॉल पर ही इस दल ने तुरंत मौके पर पहुंचकर मनचलों और शोहदों को गिरफ्तार किया। कई जगह तो सबके सामने उनकी धुनाई कर सबक भी सिखाया। लेकिन जल्द ही यह गुंडा दमन दल भी अपनी राह से भटक गया और इस पर उगाही और छेड़छाड़ के आरोप लगने लगे।

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कई बार शिकायतें ये भी मिली की अकेले बैठे लड़का लड़की से भी इस दल के सदस्यों ने अभद्रता की और युवकों की पिटाई तक कर डाली। क्योंकि दल में सभी जवान नई उम्र के थे इसलिए ये आरोप भी लगे कि पार्क और रेस्टोरेंट में बैठे प्रेमी जोडों को बिना बात हड़काने लग जाते हैं। बहरहाल डीआईजी के जाते ही इस दल को भंग कर दिया गया। 

एक बार फिर उसी राह पर पुलिस पुलिस एक बार फिर उसी राह पर है और पूरे प्रदेश में एंटी रोमियो दल का गठन किया जा रहा है, लेकिन सवाल अब भी वही है की क्या पुलिस अपनी उस पुरानी मानसिकता को बदल पाएगी? क्या पुलिस साथ घूमने वाले युवक-युवतियों में या पीछा करते शाहदों में अंतर कर पाएगी?

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यूपी पुलिस दावा कर रही है कि दो दिन में उसने 800 रोमियो पकड़े हैं, सवाल ये है कि ये रोमियो कौन हैं जो अब तक पुलिस की गिरफ्त से दूर थे? क्या ये अब से पहले महिलाओं से छेड़खानी और उन्हें तंग नहीं करते थे या फिर पहले पुलिस की निगाहें इन पर नहीं पड़ती थी। आखिर पुलिस भी वही है और अधिकारी भी। या फिर इन रोमियो के बहाने वो लोग तो पुलिस का शिकार तो नहीं हो गए ‌जिनके इरादों में कुछ भी गलत नहीं था। सवाल ये भी है कि जो पुलिस ‌थाने आने वाली पीड़ित महिलाओं को न्याय नहीं दिला सकती वो राह चलती पीड़िताओं की मदद कर पाएगी? 

 
 

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