देहरादून, उत्तराखंड में फूल संक्रांति फूलदेई पर्व उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। सोमवार को चैत की संक्रांति के मौके पर राज्यभर में यह पर्व मनाया जा रहा है। देहरी पूजन के लिए बच्चे घर-घर पहुंच रहे हैं।
‘फूलदेई छम्मा देई, दैणी द्वार भर भकार’
चैत की संक्रांति पर उत्तराखंड में इस पर्व को मनाया जाता है। इस दिन बच्चों द्वारा घरों की देहरी को फूलों से सजाया जाता है। घर की चौखट पर पूजन करते हुए ‘फूलदेई छम्मा देई’ कहकर मंगलकामना की जाती है। इस पर्व पर आस पड़ोस के बच्चों की भूमिका अहम होती है।
इन बच्चों को फुलारी कहा जाता है। इस दिन फुलारी टोकरी लेकर फूल चुनने जाती है। इसके बाद ‘फूलदेई छम्मा देई, दैणी द्वार भर भकार’ गीत को गाते हुए घर की देहरी का पूजन कर रंग-विरंगे फूलों से सजाती है और सुख व संपन्नता का आशीर्वाद देती है।
घोगामाता व मा नंदा देवी की डोली का पुष्पवर्षा से स्वागत
लोकपर्व फूलदेई के उपलक्ष्य में नन्हीं बालिकाओं ने हाथ में फूलों की टोकरी लेकर रुद्रप्रयाग जनपद से आई घोगा माता की डोली व अल्मोड़ा से आई मा नंदा देवी की डोली पर पुष्प वर्षा कर स्वागत किया।
फूलदेई संरक्षण मुहिम संस्था की ओर से डालनवाला के गणपतिकुंज सरकुलर रोड स्थित एक घर में फूलदेई आह्वान संध्या का आयोजन किया गया। जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, महापौर सुनील उनियाल गामा, डीजीपी अशोक कुमार व संस्था के संरक्षक शशिभूषण मैठाणी शामिल रहे। इस मौके पर बच्चों ने मनमोहक सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दी।
13 जिलों की फूलटोकरी, रुद्रप्रयाग जनपद से घोगा माई की डोली व अल्मोड़ा से मां नंदा देवी की डोली मुख्य आकर्षण का केंद्र रहीं। संस्था के संरक्षक शशिभूषण मैठाणी ने बताया कि सोमवार को विभिन्न स्कूलों के फुलारी बच्चों की टीम फूलों की टेाकरी लेकर ढोल दमाऊं की थाप पर राजभवन पहुंचेगी। जहां वह राज्यपाल को फूलदेई की शुभकामाएं देगी। उन्होंने बताया कि कार्यक्रम का उद्देश्य लोकपर्व को जिंदा रखने और युवा पीढ़ी को इससे रूबरू करवाना है।