भगवान श्रीराम का नाम लेने मात्र से ही व्यक्ति को अपने जीवन की बड़ी से बड़ी समस्याओं से बाहर आने का मार्ग आसानी मिल जाता है. इतना ही नहीं मरने के बाद भी श्रीराम का नाम ही व्यक्ति की मृत आत्मा को मुक्ति प्रदान करता है. ये तो हर कोई जानता है कि त्रेतायुग में जन्में मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम भगवान विष्णु के अवतार थे और उनका जन्म आयोध्या के राजा दशरथ के यहां हुआ था. लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि भगवान विष्णु ने श्रीराम के रुप में जन्म लेने के लिए आयोध्या को ही क्यों चुना. दरअसल आयोध्या में भगवान श्रीराम के जन्म लेने के पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी है जिससे हम आपको रूबरू कराने जा रहे हैं.
मनु और शतरूपा ने विष्णु जी के लिए किया कठोर तप
पौराणिक कथाओं के अनुसार स्वायंभुव मनु और उनकी पत्नी शतरूपा से ही मनुष्य जाति की उत्पत्ति हुई थी. मान्यताओं के अनुसार मनु ने अपनी जीवन काल में बहुत समय तक राज किया और बीतते समय के साथ-साथ उनका बुढ़ापा भी करीब आ गया.जब मनु बुढ़ापे की अवस्था में पहुंचे तो उन्हें ये सोचकर बहुत दुख हुआ कि उन्होंने अपना सारा जीवन राज करने में बिता दिया और जीवनभर श्रीहरि की भक्ति नहीं की. यह सोचकर मनु ने अपनी इस गलती को सुधारने का प्रण लिया और अपने पुत्र को सारा राजपाट देकर अपनी पत्नी शतरूपा के साथ वन में चले गए.
घर और राजपाट पुत्र को सौंपने के बाद मनु अपनी पत्नी के साथ तीर्थों में श्रेष्ठ कहे जानेवाले नैमिषारण्य धाम पहुंचे. जहां रहकर मनु और शतरूपा ने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए कई सालों तक कठोर तप किया. दोनों ने फल, मूल का त्याग कर दिया और सिर्फ जल पीकर ही भगवान विष्णु की भक्ति में लगे रहे. इस तरह उन्होंने करीब छह हजार साल तक तपस्या की.
मनु और शतरूपा ने वरदान में मांगा विष्णु जैसा पुत्र
तपस्या करते हुए जब छह हजार साल बीत गए तब उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए और वरदान मांगने के लिए कहा. जिसके बाद मनु और शतरूपा ने भगवान विष्णु से उनके जैसा ही पुत्र पाने की इच्छा जताई. हालांकि दोनों की इस इच्छा को सुनकर भगवान विष्णु ने कहा कि उनकी ये इच्छा पूरी नहीं हो सकती क्योंकि इस संसार मेरे जैसा यानी स्वयं विष्णु जैसा दूसरा कोई नहीं है.
श्रीहरि की इस बात को सुनकर मनु और शतरूपा निराश हो गए, जिसके बाद उनकी निराशा को देखकर भगवान विष्णु ने कहा तुम्हारी ये इच्छा अगले जन्म में पूरी हो पाएगी. भगवान विष्णु ने मनु से कहा कि कुछ समय बाद तुम्हारा जन्म राजा दशरथ के रुप में आयोध्या में होगा. तभी भगवान विष्णु उनके पुत्र के रुप में जन्म लेकर उनकी इस इच्छा को पूरी कर सकेंगे. गौरतलब है कि मनु और शतरूपा के दिए गए इस वरदान को पूरा करने के लिए ही त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने आयोध्या के राजा दशरथ के यहां उनके पुत्र श्रीराम के रुप में जन्म लिया और मर्यादापुरुषोत्तम बनकर उन्होंने रघुकुल का मान बढ़ाया.