फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्थी संकष्टी चतुर्थी या द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी कहलाती है। ऐसे में इस बार द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का व्रत 20 फरवरी, रविवार को रखा जाएगा। वहीं दूसरी तरफ धार्मिक मान्यताओं को माने तो इस दिन विधिपूर्वक भगवान गणेश की पूजा की जाती है। इसी के साथ ही इस दिन गौरी-गणेश की पूजा करने से मनोकामना पूरी हो जाती है। आप सभी को बता दें कि द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन कथा का पाठ भी किया जाता है।
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी: द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह स्नान के बाद लाल वस्त्र धारण कर व्रत का संकल्प लें। उसके बाद पूजा स्थान पर दीपक जलाएं। वहीं पूजन के समय अपना मुंह पूरब या उत्तर दिशा में रखें। इस दौरान साफ-सुथरे आसन या चौकी पर भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र रखें। अब इसके बाद उनके सामने धूप-दीप जलाएं। वहीं इसके बाद गौरी-गणेश की विधि-विधान से पूजा करें। इसके बाद पूजा के दौरान ॐ गणेशाय नमः या ॐ गं गणपतये नमः का जाप करें। वहीं पूजन के बाद भगवान के तिल से बनी मिठाई या लड्डू का भोग लगाएं। अब इसके बाद भगवान गणपति को चंदन लगाएं और दूर्वा अर्पित करें और इसके बाद भगवान गणेश की आरती करें। वहीं उसके बाद शाम को चांद निकलने से पहले गणपति की पूजा करें। अब इसके बाद चंद्रमा को अर्घ्य दें। अंत में व्रत कथा कहें या सुनें। पूजन समाप्ति के बाद अन्न का दान करें।
पंचांग: पंचांग के मुताबिक द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का व्रत 20 फरवरी 2022, रविवार को रखा जाएगा। आपको बता दें कि चतुर्थी तिथि की शुरुआत 19 फरवरी को रात्रि 9 बजकर 56 मिनट से हो रही है, जबकि चतुर्थी तिथि का समापन 20 फरवरी की रात्रि 9 बजकर 05 मिनट पर होगी। इसी के साथ संकष्टी चतुर्थी के दिन चंद्रोदय रात्रि 9 बजकर 50 मिनट पर होगा।