कालाष्टमी का त्यौहार प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह भगवान शिव के ही एक रौद्र रूप भगवान भैरव को समर्पित है। आप सभी को बता दें कि प्रत्येक माह में आने के कारण यह त्यौहार एक वर्ष में कुल 12 बार, तथा अधिक मास की स्थिति में 13 बार मनाया जाता है। वहीं काल भैरव को पूजे जाने के कारण इसे काल भैरव अष्टमी अथवा भैरव अष्टमी भी कहा जाता है। इस महीना कालाष्टमी व्रत बुधवार, 23 फरवरी 2022 को रखा जाने वाला है। आप सभी को बता दें कि मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष को आने वाली मास में पड़ने वाली कालाष्टमी सबसे अधिक प्रसिद्ध है जिसे कालभैरव जयंती के नाम से जाना जाता है। वहीं कालाष्टमी के रविवार अथवा मंगलवार के दिन पड़ने पर इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है, क्योंकि साप्ताह के ये दिन भी भगवान भैरव को समर्पित माने जाते हैं। अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं कालाष्टमी की प्रामाणिक और पौराणिक कथा।
कालाष्टमी की प्रामाणिक और पौराणिक कथा- एक बार की बात है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीनों में श्रेष्ठता की लड़ाई चली। इस बात पर बहस बढ़ गई, तो सभी देवताओं को बुलाकर बैठक की गई। सबसे यही पूछा गया कि श्रेष्ठ कौन है? सभी ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए और उत्तर खोजा लेकिन उस बात का समर्थन शिवजी और विष्णु ने तो किया, परंतु ब्रह्माजी ने शिवजी को अपशब्द कह दिए। इस बात पर शिवजी को क्रोध आ गया और शिवजी ने अपना अपमान समझा। शिवजी ने उस क्रोध में अपने रूप से भैरव को जन्म दिया। इस भैरव अवतार का वाहन काला कुत्ता है। इनके एक हाथ में छड़ी है। इस अवतार को ‘महाकालेश्वर’ के नाम से भी जाना जाता है इसलिए ही इन्हें दंडाधिपति कहा गया है।
शिवजी के इस रूप को देखकर सभी देवता घबरा गए। भैरव ने क्रोध में ब्रह्माजी के 5 मुखों में से 1 मुख को काट दिया, तब से ब्रह्माजी के पास 4 मुख ही हैं। इस प्रकार ब्रह्माजी के सिर को काटने के कारण भैरवजी पर ब्रह्महत्या का पाप आ गया। ब्रह्माजी ने भैरव बाबा से माफी मांगी तब जाकर शिवजी अपने असली रूप में आए। भैरव बाबा को उनके पापों के कारण दंड मिला इसीलिए भैरव को कई दिनों तक भिखारी की तरह रहना पड़ा। इस प्रकार कई वर्षों बाद वाराणसी में इनका दंड समाप्त होता है। इसका एक नाम ‘दंडपाणी’ पड़ा था।