अमेरिका: ब्रिटेन,अंतरराष्ट्रीय अदालत (आईसीजे) में एक सीट पर चुनाव में भारत के उम्मीदवार दलवीर भंडारी को रोकने के लिए घटिया राजनीति पर उतर आया है. वह मतदान की प्रक्रिया को खत्म करने के लिए ज्वाइंट कांफ्रेंस मेकैनिज्म पर जोर देकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपनी स्थायी सदस्यता का गलत इस्तेमाल कर रहा है.
भंडारी चुनावी दौड़ में आगे चल रहे हैं. आईसीजे की एक सीट के लिए भंडारी और ब्रिटेन के क्रिस्टोफर ग्रीनवुड के बीच चुनाव बेनतीजा रहने के बाद गतिरोध पैदा हो गया है. राजनयिक सूत्रों ने बताया कि ब्रिटेन सुरक्षा परिषद में ज्वाइंट कांफ्रेंस मेकैनिज्म पर जोर दे रहा है, जिसका इस्तेमाल आखिरी बार करीब 96 साल पहले किया गया था और इसके खिलाफ स्पष्ट कानूनी राय है.
भारत के पूर्व औपनिवेशिक शासन द्वारा खेली जा रही घटिया राजनीति से सुरक्षा परिषद के अन्य सदस्यों के बीच असहजता पैदा हो गई है. इनमें से कई इस बात के दीर्घकालिक प्रभावों को जानते हैं कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में बहुमत को नजरअंदाज करने का क्या नतीजा होगा. पूर्व में महासभा में बहुमत पाने वाले उम्मीदवार को ही हेग स्थित आईसीजे में न्यायाधीश चुना जाता है.
भंडारी के पास 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र सदस्यों में से करीब दो तिहाई का समर्थन प्राप्त है. ग्रीनवुड महासभा में 50 से अधिक वोटों से पीछे हैं. हालांकि सुरक्षा परिषद में उन्हें भंडारी के पांच वोटों के मुकाबले नौ वोट मिले. आईसीजे का चुनाव जीतने के लिए किसी उम्मीदवार को महासभा और सुरक्षा परिषद में बहुमत हासिल करने की जरूरत होती है, लेकिन अभी तक 11 चरणों के मतदान में किसी को भी बहुमत नहीं मिला. ब्रिटेन अपने पक्ष में बहुमत ना होने को भांपते हुए 14 सदस्यों के साथ अनौपचारिक बातचीत के लिए सुरक्षा परिषद गया.
ऐसा माना जा रहा है कि ब्रिटेन ने प्रस्ताव रखा कि सुरक्षा परिषद में कल पहले चरण के चुनाव के बाद मतदान रोक दिया जाए और उसके बाद ज्वाइंट कांफ्रेंस मेकैनिज्म हो. ऐसा समझा जा रहा है कि सुरक्षा परिषद के कुछ सदस्यों ने इसका विरोध किया। ब्रिटेन को मतदान रोकने के लिए नौ वोटों की जरुरत है.
इस विकल्प का वर्ष 1921 में संयुक्त राष्ट्र के गठन से पहले केवल एक बार इस्तेमाल किया गया था तब परमानेंट कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल जस्टिस में डिप्टी जजों का चुनाव किया गया था. संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने ज्वाइंट कांफ्रेंस मेकैनिज्म का कड़ा विरोध किया.उन्होंने 160 से अधिक देशों के राजनयिकों से कहा, आप राजनयिक हैं, आप गंभीर लोग हैं. कूटनीति समाधान है. मतदान के तरीके से राजनयिक अपने मतभेद सुलझाते हैं ना कि गुजरे जमाने के पेचीदा तरीके से.
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