नई दिल्ली: अमेरिका 3 नवंबर को राष्ट्रपति चुनाव होने हैं। लिहाजा वहां सियासी घमासान जोरों पर है। रिपब्लिक पार्टी के उम्मीदवार और मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन में कड़ा मुकाबला देखा जा रहा है। वहीं उप राष्ट्रपति की रेस में भारतीय मूल के 2 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं। डेमोक्रेटिक पार्टी ने कमला हैरिस और पार्टी फॉर सोशलिज्म एंड लिबरेशन (पीएसएल) सुनील फ्रीमेन को चुनावी मैदान में उतारा है।
हैरिस लगातार सुर्खियों में हैं और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप उन्हें समाजवादी कह चुके हैं, वहीं फ्रीमैन ठोस कट्टरपंथी समाजवादी एजेंडे पर उम्मीदवार हैं। फ्रीमैन की मां फ्लोरा नविता भारत से हैं और वे उनके पिता से तब मिली थीं, जब वह विभाजन के बाद वाराणसी में एक शरणार्थी शिविर में शिक्षक थीं। वहीं सुनील के पिता चार्ल्स फ्रीमैन एक अमेरिकी शांति समूह के सदस्य के रूप में भारत का दौरा करने आए थे।
उन्होंने आईएएनएस को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि उनकी मां हमेशा साड़ी पहनतीं थीं और अमेरिका में कई दशकों तक रहने के बाद भी उनकी भारतीय नागरिकता बरकरार थी। वे नई दिल्ली और लखनऊ में पली-बढ़ी। वाशिंगटन में पले-बढ़े सुनील फ्रीमैन ने कहा कि 10 साल की उम्र में की गई भारत यात्रा “मेरे जीवन का सबसे शक्तिशाली अनुभव” था।
अपनी विचारधारा को लेकर उन्होंने कहा, “हम एक कम्युनिस्ट संगठन हैं, और समाजवाद को कम्युनिस्ट समाज की दिशा में कदम के रूप में देखते हैं, लेकिन यह एक लंबी प्रक्रिया है। हम ऐसे समाजवाद की तलाश कर रहे हैं जिसमें श्रमिक उत्पादन के साधनों को नियंत्रित करते हैं और बेहतर समाज के लिए उनका उपयोग करते हैं। हम हिंसा की बात नहीं करते और मौजूदा कानून व्यवस्था में काम करेंगे।”
पीएसएल अपनी वेबसाइट पर खुद को ‘क्रांतिकारी मार्क्सवादी पार्टी’ के रूप में वर्णित करता है। पार्टी के राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार ग्लोरिया ला रीवा हैं, जो एक फायरब्रांड कार्यकर्ता हैं और 2008 से राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ रही हैं।
हालांकि पीएसएल का नाम केवल 14 राज्यों में बैलेट पर होगा, जिसमें कैलिफोर्निया, न्यू जर्सी और इलिनोइस शामिल हैं।
सुनील फ्रीमैन ने कहा कि उनकी सक्रियता के पीछे उनकी मां ही शुरूआती प्रेरणाओं में से एक थीं। वहीं उनके श्वेत पिता अमेरिका के दक्षिण हिस्से में पले-बढ़े, जहां नस्लवाद काफी था। लेकिन चार्ल्स फ्रीमैन का परिवार प्रगतिशील था और नस्लवाद का विरोध करता था। वहीं 65 वर्षीय सुनील फ्रीमैन वाशिंगटन के एक उपनगर में राइटर सर्कल नामक एक संगठन के लिए काम करते थे और अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं।