समय को महज़ तीन महीने पीछे करें तो देश की कोई ऐसी हस्ती नहीं थी जिसने जीएसटी की तारीफ़ का पुल न बाँधा हो. केन्द्र सरकार के महत्वपूर्ण मंत्रियों समेत कर विभाग के आला अधिकारी टेलीवीजन चैनलों पर बैठकर देश को समझा रहे थे कि कैसे जीएसटी में इनपुट टैक्स क्रेडिट का प्रावधान क्रांतिकारी बदलाव लाएगा और उपभोक्ता के लिए भारत को दुनिया के सस्ते बाज़ार में बदल देगा.
बीजेपी प्रवक्ता लंबे लंबे भाषणों में दावा कर रहे थे कि जीएसटी कैसे देश के छोटे और इनफ़ॉर्मल सेक्टर में टैक्स चोरों पर नकेल कस देगा. तब यह जानते हुए भी कि आने वाला जीएसटी कमज़ोर है, केन्द्र सरकार के अर्थशास्त्री दंभ भर रहे थे कि कैसे जीएसटी से देश में लघु और मध्यम कारोबार (वह क्षेत्र जो अर्थव्यवस्था में सबसे ज़्यादा नौकरी देता है) जीडीपी विकास दर की रफ़्तार में इज़ाफ़ा कर देगा.
अब महज़ तीन महीने पहले मध्यरात्रि को लॉन्च हुए जीएसटी पर अपने संपूर्ण ज्ञान को दरकिनार करते हुए केन्द्र सरकार भारी फेरबदल कर जीएसटी के कई फैसलों को वापस ले रही है.
सुधारों से समझौता?
अपनी 22वीं बैठक में जीएसटी काउंसिल ने कंपोजीशन स्कीम के तहत छूट की सीमा को बढ़ाते हुए 1.5 करोड़ रुपये तक के कारोबार को प्रति माह रिटर्न दाखिल करने की जगह तिमाही आधार पर रिटर्न दाखिल करने की छूट देकर दो अहम समझौते किए.
इस फैसले से जीएसटी के दायरे में आने वाले लगभग 90 फीसदी कारोबार को मासिक रिटर्न के प्रावधान से छूट दे दिया अब महज 10 फीसदी कारोबार पर मासिक आधार पर रिटर्न दाखिल करना होगा. इसमें कोई हैरानी नहीं होगी कि आगे चलकर बचे इन 10 फीसदी बड़े कारोबार को भी मासिक रिटर्न दाखिल करने से छूट दे दी जाए.
अब तिमाही आधार पर रिटर्न दाखिल करने से रीयल टाइम में इनवॉयस मैचिंग और टैक्स क्रेडिट देना नामुमकिन हो जाएगा. इससे जीएसटी भी पिछली टैक्स व्यवस्था जैसा रह जाएगा और नया सिर्फ इतना होगा कि नई व्यवस्था में खपत पर अधिक टैक्स देय होगा.
नोटबंदी जैसा हो गया जीएसटी?
जीएसटी काउंसिल ने तीन महीने में तीन बार उत्पाद और सेवाओं पर टैक्स घटाकर खुद साफ कर दिया है कि जीएसटी लागू करने में खामियां मौजूद थीं. लिहाजा, अपनी 22वीं बैठक में एक बार फिर टैक्स दरों को सच्चाई का हवाला देते हुए घटाने से अब कहा जा सकता है कि जीएसटी से होने वाले सुधारों को रोक दिया गया है. अब स्वाभाविक सवाल उठता है कि जिस सच्चाई का हवाला अब सरकार दे रही है उसे जीएसटी लागू करने से पहले क्यों नजरअंदाज किया गया? गौरतलब है कि जीएसटी की तैयारी के दौरान इस बात को कई बार चेताया गया कि कहीं जीएसटी से भी नोटबंदी जैसा उथल-पुथल देखने को न मिले.
जिम्मेदार कौन? इन 5 सवालों का जवाब किसके पास?
दो अहम राज्यों में चुनाव को देखते हुए केन्द्र सरकार ने जीएसटी की उथप-पुथल से नाराज कारोबारियों को मनाने के लिए कई अहम सुधारों को जीएसटी के दायरे से बाहर कर दिया है. इस फैसले से लगभग 90 फीसदी कारोबारियों को राहत पहुंचेगी लेकिन इन सवालों से सरकार पल्ला नहीं झाड़ सकती है:
1. जीएसटी लागू करने के लिए 1 जुलाई की तारीख क्यों तय की गई? जबकि केन्द्र सरकार इसे पूरी तैयारी के साथ 15 सितंबर तक लागू कर सकती थी. इससे जीएसटी के सॉफ्टवेयर को दुरुस्त करने और कारोबारियों को नए कर व्यवस्था में जाने के लिए अधिक समय मिल जाता?
2. यह जानते हुए कि जीएसटी के लिए कारोबार का डिजिटल होना जरूरी था क्यों नए जीएसटीएन सॉफ्टवेयर को ऐसे 90 फीसदी कारोबारियों पर थोपा गया जिन्हें कंप्यूटर के जरिए एकीकृत होना बाकी था?
3.जीएसटी लागू करने से पहले सरकार ने उन पहलुओं पर तैयारी क्यों नहीं की जिनका असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ना संभावित था?
4. क्यों जीएसटी लागू करने से पहले केन्द्र सरकार ने एक्साइज और वैट के तहत टैक्स ढ़ाचे में सुधार करने को प्राथमिकता नहीं दी?