साल के बारह महीनों पर्यटकों की भीड़ व चहलकदमी से गुलजार रहने वाले जोशीमठ नगर में अब खामोशी पसरने लगी है। चारधाम यात्रा व पर्यटन सीजन में देश-विदेश के हजारों पर्यटकों व तीर्थयात्रियों को शरण देने वाले नगर के लोग अब स्वयं राहत कैंपों में शरण ले रहे हैं।
त्रासदी की ऐसी तस्वीर देखकर हर कोई हैरान है। बाजार में लोगों की चहलपहल की बजाय प्रशासनिक मशीनरी की हलचल बढ़ गई है। दिन तो जैसे तैसे कट रहा है। लेकिन, शाम ढलने के साथ लोगों के चेहरे पर यह डर गहराने लगता है कि दरारों की बीच टिका उनका मकान अगली सुबह रहेगा या जमींदोज हो जाएगा।
घर छोड़कर राहत कैंपों में रह रहे लोग रोजाना अपने मकानों की हालत देखने पहुंच जाते हैं और काफी देर उसके आसपास बैठे रहते हैं।
आंखों में बरबस आ जाते हैं आंसू
बाप-दादा के साथ जिस घर में सुख-दुख के तमाम मौसम देखे, उस घर की दीवार और फर्श पर दरारें देखकर आंखों में बरबस आंसू आ जाते हैं।
नगर के किसी ना किसी इलाकें से घरों व जमीन पर पड़ी दरारों के थोड़ा और चौड़ी होने के खबर आती है तो उन लोगों का दिल बैठ जाता है, ज्यादातर घर खतरे की जद में आए हैं। घरों से सामान समेटकर राहत कैंपों की ओर जाते लोग आशंकित हैं कि अब आगे उनका भविष्य क्या होगा।
जोशीमठ नगर में आपदा प्रभावितों के घर भले ही अलग-अलग हो परंतु सभी के यहां त्रासदी एक जैसी है। घर क्षतिग्रस्त हो गए हैं। प्रशासन ने रेड निशान लागाकर घर छोड़ने को कहा है।
परिवार सड़क पर हैं। सरकारी अमला मदद के लिए सक्रिय है। लेकिन, आपदा प्रभावित इस सदमें से उबर नहीं पा रहे हैं। भविष्य की चिंता उन्हें खाए जा रही है। सिंहधार निवासी 60 वर्षीय भारती देवी का मकान पूरा ध्वस्त हो चुका है।
भारती देवी का कहना है कि तीन जनवरी की मध्य रात्रि को एकदम आवाज आई तो उसने जाग कर देखा की मकान पर दरारें आई हैं। उन्होंने घर के आसपास रहने वाले लोगों को उठाया तो देखा कि यहां जमीन फट रही है। भारती देवी के पति की सात साल पहले मौत हो गई थी।
मेहनत मजदूरी कर भारती देवी ने पक्का घर बनाया। लेकिन, वह भी पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। भारती देवी का कहना है कि बेटा भी बेरोजगार है। खाना तो मेहनत मजदूरी कर मिल जाएगा। परंतु घर का क्या होगा यह चिंता सता रही है।
सिंहधार में ही ऋषि देवी भी अपने बेटे बहू व पोतों को साथ रहती थी। उनका मकान भी पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया है। वह प्राथमिक विद्यालय सिंहधार के राहत कैंप में रह रही हैं। उनका कहना है कि अब बच्चों के भविष्य को लेकर चिंता है।
हम तो कहीं भी गुजारा कर लेंगे, परंतु मवेशियों का क्या होगा, इनके लिए चारा, सुरक्षित रहने के लिए गोशाला की व्यवस्था कैसी होगी। वह रोज सुबह अपने टूटे घर को देखतीं हैं तो आंखों में आंसू आ जाते हैं।
मनोहर बाग निवासी 38 वर्षीय सूरज कपरवाण नगर के युवा करोबारियों में से एक हैं, जिन्होंने स्वरोजगार का सपना देखकर अपने स्वजन की जमा पूंजी के साथ बैंक से कर्ज लेकर मनोहरबाग में अपने घर के ऊपर नवंबर 2022 में लांड्री करोबार शुरू किया था। उनका यह प्रोजेक्ट करीब 30 लाख रुपये का है। लेकिन, इस आपदा से लांड्री हाउस पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया है। साथ में गोशाला व मकान में भी दरारें आ गई हैं।
सूरज का कहना है कि वे अपने परिवार के साथ रहते हैं। प्रशासन तो राहत कैंपों में रहने को कह रहा है। परंतु यहां बंधे उनके मवेशियों का क्या होगा। कारोबार के लिए लिया गया कर्ज अलग से चिंता बढ़ा रहा है। संतोष बिष्ट का मनोहर बाग में दो मंजिला मकान है।
मोबाइल रिपेयर करने वाले संतोष इस मकान में परिवार सहित रहते हैं। मकान पूरा क्षतिग्रस्त हो चुका है। खतरे के बाद बेटे को ननिहाल गोपेश्वर भेजा है। खुद परिवार सहित खतरे के बाद भी यहीं रह रहे हैं। कहना है कि रात्रि भर चिंता से नींद नहीं आती। परिवार को ढांढस बंधाकर किसी तरह समय गुजर रहा है। सुबह तहसील में मदद की उम्मीद से जाते हैं। यही दिनचर्या बनी हुई है।