शिवाजी अपने शिविर में बैठे माधव भामलेकर के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। वह सैन्य सलाहकार थे, उस क्षेत्र के अच्छे जानकार। अगले हमलों के बारे में रणनीति बनानी थी। इसी बीच हाथ में एक ग्रंथ लिए एक सैन्य अधिकारी वामनराव पहुंचे। उनके पीछे एक डोली उठाए दो सैनिक भी आए।
डोली रखकर वे चले गए। उन लोगों के जाने के बाद शिवाजी की सेना के उस अधिकारी ने कुछ गर्व के भाव से कहा-‘महाराज! आज मुगल सेना को दूर तक खदेड़ दिया गया। बहलोल खां जान बचाकर भागा है। अब ताकत नहीं कि वह या कोई मुगल सेनानायक इधर आने की सोच भी सके।
शिवाजी ने उसकी बातें सुनी, पर कहा कुछ नहीं। वह लगातर पालकी की ओर देखे जा रहे थे। वामनराव की बात पूरी हुई, तो उन्होंने पूछा-‘यह क्या है?’ उसने गर्व से बताया-इसमें बहलोल की बेगम है। यह सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। हम लोगों ने इसे महाराज को नजर करने के लिए रखा है। हमारी संस्कृति से खिलवाड़ करने वालों से जी भरकर इंतकाम लीजिए।
शिवाजी ने सुना और चुपचाप उठे। वह पालकी के पास आए और डोली से पर्दा हटाकर बहलोल बेगम को बाहर आने के लिए कहा। बेगम डरती-सकुचाती डोली से बाहर आई। उसे निहारकर उन्होंने कहा, ‘सचमुच आप बहुत सुंदर हैं। अफसोस कि मैं आपका पुत्र नहीं हुआ, काश होता, तो मैं भी कुछ सुंदरता पा जाता।’
उन्होंने अपने एक अन्य अधिकारी को आदेश दिया कि बेगम साहिबा को पूरी सुरक्षा के साथ बहलोल खां को जाकर सौंप आइए। फिर शिवाजी ने वामनराव को फटकारा, आप मेरे साथ इतने दिन रहे, पर मुझे पहचान नहीं सके। हम वीर हैं, वीर की परिभाषा यह नहीं कि अबलाओं पर प्रहार करे, उनका अपहरण करे। किसी की संस्कृति नष्ट करना कायरता है। कहना न होगा कि नायक वामनराव को बेहद ग्लानि हुई।