समिति के एक सदस्य ने कहा कि हमने सोमवार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी. यदि कोई संवैधानिक या कानूनी बाधा होती तो हम रिपोर्ट बिल्कुल भी नहीं सौंपते. झंडे की आकृति के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि इस झंडे में पीला, सफेद और लाल रंग होगा. इसके बीच में राज्य का प्रतीक चिह्न होगा. सदस्य ने कहा कि हमने पीले और लाल झंडे के बीच सफेद रंग के साथ तिरंगा ध्वज का सुझाव  दिया है. इसके मध्य में राज्य का प्रतीक भी होगा.

कन्नड एवं संस्कृति विभाग के प्रधान सचिव की अध्यक्षता में पिछले वर्ष एक समिति का गठन किया गया था. इस समिति में कार्मिक और प्रशासनिक सेवाओं, गृह, विधि और संसदीय मामलों के सचिवों, कन्नड़ साहित्य परिषद के अध्यक्ष, कन्नड विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष और कन्नड विश्वविद्यालय के कुलपति शामिल थे. सरकार द्वारा समिति का गठन किए जाने को लेकर भाजपा और कुछ समूहों ने इसकी आलोचना की थी. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इससे पूर्व इसका बचाव करते हुए कहा था कि राज्य के लिए एक अलग ध्वज के खिलाफ कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है. उन्होंने सवाल किया था कि क्या संविधान में कोई प्रावधान हैं. क्या आप संविधान में कोई प्रावधान लाए हैं. क्या भाजपा के लोग प्रावधान ला रहे है तो फिर वे इस मुद्दे को क्यों उठा रहे है.

2012 में उठी थी मांग

एक ओर जहां बीजेपी सरकार ‘एक राष्ट्र और एक निशान’ की बात करती है वहीं दूसरी तरफ कर्नाटक सरकार की ओर से अलग झंडे की मांग पर आगे बढ़ना विवाद को जन्म दे सकता है. इससे पहले जब 2012 में यह मुद्दा राज्य की विधानसभा में उठाया गया था. उस समय मंत्री गोविंद एम करजोल ने कहा था कि फ्लैग कोड हमें राज्य के लिए अलग झंडे की इजाजत नहीं देता. हमारा राष्ट्रीय ध्वज देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता का प्रतीक है.

कांग्रेस हाईकमान कर चुका है मांग खारिज

गौरतलब है कि कर्नाटक के लिए अलग झंडे की मांग का कांग्रेस नेता शशि थरूर ने समर्थन किया था. बेंगलुरु में आयोजित एक कार्यक्रम में थरूर ने कहा था कि देश के हर राज्य के पास अपना झंडा होना चाहिए. उन्होंने  झंडे को पहचान का प्रतीक बताया था. वहीं कांग्रेस हाईकमान ने कर्नाटक कांग्रेस की इस मांग के लिए फटकार भी लगाई थी.