दुनिया भर के 25 फीसदी वैवाहिक जोड़े संतान पैदा करने में नाकाम रहते हैं. यह कहना है आईजोनॉमिक्स की डॉक्टर रजनी खजुरिया का. खजुरिया का कहना है कि संतान के लिए ये जोड़े कृत्रिम गर्भधारण का सहारा लेते हैं.

पिछले पांच साल में 40 साल से अधिक उम्र वाली महिलाओं ने भी बच्चों को जन्म दिया है और यह सब कृत्रिम गर्भधारण से सम्भव हो सका है लेकिन यह काम अगर सही समय से और सही पद्धति से नहीं किया जाए तो इसमें भी कई तरह की जटिलताएं आ जाती हैं.
खजुरिया ने बताया कि दुनिया भर में 25 फीसदी जोड़े स्वाभाविक रूप से गर्भ धारण नहीं कर पाते हैं, इसीलिए वे आईवीएफ जैसी सहायक प्रजनन तकनीकों की सहायता से बच्चा पैदा कर पाते हैं लेकिन यह काम इतना भी आसान नहीं. इसके लिए सही समय और सही पद्धति का होना जरूरी है.
देखा गया है कि आईवीएफ का चयन करना किसी भी जोड़े के लिए पहाड़ चढ़ने से कम नहीं होता है क्योंकि आईवीएफ में कई मामले देखें गए हैं जहां महिलाओं को गर्भपात का सामना करना पड़ता है या सफल प्रत्यारोपण के बावजूद भी आईवीएफ फेल हो जाता हैं. ऐसे कई कारण हैं जिनसे आईवीएफ में विफलताएं होती हैं.
पहला कारण यह है कि आईवीएफ तकनीक इस्तेमाल करने वाली 50 फीसदी से अधिक महिलाओं में क्रोमोजोमल असामान्यताओं के कारण गर्भपात हो जाता है. अगर क्रोमोजोमल असामान्यताओं के बाद भी बच्चें का जन्म हो पाता है तो ऐसी असामान्यताओं वाला बच्चा मानसिक या शारीरिक रुप से परिपक्व नहीं होता है.
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दूसरा कारण, आईवीएफ विफल होने के कारणों में एक कारण गर्भाशय की परत परिपक्व नहीं होना हैष उदाहरण के लिए, पॉलीसिस्टिक ओवरीसिंड्रोम (पी.सी.ओ) से पीड़ित महिलाओं को गर्भधारण में अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ता है.
रजनी ने बताया कि महिलाओं में 25 फीसदी भ्रूण का हस्तांतरण गलत दिनों में किया जाता है. जिससे महिला को गर्भपात का सामना करना पड़ता है, इसीलिए ई.आर.ए टेस्ट के जरिए भ्रूण आरोपण की सही खिड़की (डब्लू.ओ.आई) के बारे में सूचना मिलती है, साथ में, 60 फीसदी गर्भावस्था की दर में वृद्धि हो जाती हैं.
तो ऐसी विफलताओं से निपटने के लिए आईजोनॉमिक्स के विशेषज्ञों का मानना है कि आईवीएफ विफलताओं से गुजर रहे युगलों को एंडोमेट्रियल रिसेप्टीविटी एनालिसिस (ई.आर.ए) और प्री इम्प्लांटेशन जेनेटिक स्क्रीनिंग (पी.जी.एस)) जैसी तकनीकों को इस्तेमाल करना चाहिए, जिससे सफल गर्भावस्था की संभावनाएं बढ़ाई जा सके.
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