New Delhi: 31 अगस्त 1919 को जन्मीं महान कवियत्रि अमृता आजाद ख्याल लड़कियों के लिए रोल मॉडल थीं। हां लेकिन उनकी आजादी का मतलब भावनात्मक आजादी और फिर सामाजिक आजादी थी। कहा जाता है कि लिव-इन रिलेशन की नींव अमृता ने ही रखी थीं।बिग ब्रेकिंग: राम रहीम की बेटी ने खोला अपने पिता का सबसे बड़ा राज, डेरा से लेकर बीजेपी तक में मच…
अमृता प्रीतम को भारत–पाकिस्तान की बॉर्डर पर दोनों ही तरफ से प्यार मिला। अमृता ने कुल मिलाकरलगभग 100 पुस्तकें लिखीं। उन्हें पद्मविभूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वे साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाली पहली महिला थीं।
6 दशकों के अपने विशाल करियर में उन्होंने 28 नॉवेल, 18 एंथोलॉजी, पांच लघु कथाएं और बहुत सी कविताएं भी लिखी। वह अपनी एक प्रसिद्ध कविता, ‘आज आखां वारिस शाह नु’ के लिए काफी प्रसिद्ध है। अमृता पंजाबी के सबसे लोकप्रिय लेखकों में से एक थी। पंजाब के गुजरांवाला जिले में पैदा हुईं अमृता प्रीतम को पंजाबी भाषा की पहली कवयित्री माना जाता है। अमृता प्रीतम उन साहित्यकारों में से एक थीं जिनकी कृतियों का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ। अमृता का बचपन लाहौर में बीता और उनकी शिक्षा भी वहीं हुई।
अमृता एक ऐसी कवियत्रि थीं जिनकी कविताएं भावना भावना, प्रेम और संवेदनाओं से भरी होती थीं। वर्तमान समय में लिव-इन रिलेशन को पाप माना जाता है। जो लड़कियां लिव इन में रहती हैं उन्हें गंदी नजरों से देखा जाता है। लेकिन एक वक्त था जब लोग लिव-इन को स्वीकार्य नहीं करते थे तब उन दिनों अमृता लिव-इन में रहीं, लेकिन उस रिश्तें में भी सम्मान और समर्पण था। अमृता जब 6 साल की थी तब ही उनकी सगाई हो गई थी। 11 साल की उम्र में मां का छूट गया। जिस उम्र में बच्चे खेल कूद में अपना बचपन निकालते हैं। अमृता ने महज 16 साल की उम्र मेंअपनी पहली किताब पूरी कर ली थी। 16 साल में ही अमृता की शादी प्रीतम सिंह से हो गई।
अमृता जितनी खूबसूरत थी उससे कहीं ज्यादा भावुक भी थीं। बड़ी ही खूबसूरती के साथ उन्हें अपनी भावनाओं और रिश्तों के बीच सामंजस्य बिठाना आता था। हालांकि अमृता ने जिससे प्यार किया उससे शादी नहीं हो पाई लेकिन सारी उम्र उन्होंने साहिर से प्रेम किया, दो बच्चे कि मां बनी। साहिर कि मुहब्बत दिल में होने के कारण शादी- शुदा जीवन से बाहर निकलने का फैसला लिया और फिर साहिर ने भी उन्हें छोड़ दिया, लेकिन फिर भी वह सम्मान के साथ उस रिश्ते से अलग हो गईं।
अमृता को साहिर लुधियानवी से बेपनाह मोहब्बत थी। साहिर लाहौर में उनके घर आया करते थे। साहिर को सिगरेट पीने कि आदत थी, वह एक के बाद एक लगातार सिगरेट पिया करते थे। उनके जाने के बाद सिगरेट की बटों को साहिर के होंठों के निशान को महसूस करने के लिए उसे दोबारा पिया करती थीं। इस तरह अमृता को सिगरेट पीने कि लत साहिर से लगी थी। अमृता की लत ना छूटने वाली थी। अमृता साहिर को ताउम्र नहीं भुला पाईं थी। साहिर भी उन्हें मोहब्बत करते थे और दोनों एक दूसरे को ख़त लिखा करते थे। साहिर बाद में लाहौर से मुंबई चले आये, जिसके बाद भी दोनों का प्रेम बरकार रहा।
आपको जानकर हैरानी होगी कि अमृता और साहिर की मोहब्बत इस कदर थी कि दोनों एक दूसरे से जुड़े सामानों को खुद से अलग नहीं करते थे। अमृता आधे बुझे सिगरेट को पास रखती थी तो साहिर अमृता की पी हुई चाय की प्याली। हालांकि बाद में दोनों अलग हो गए। कहा जाता है कि अमृता जिस कदर साहिर से प्यार करती थी उनसे ज्यादा कोई प्यार नहीं कर सकता था। कुछ लोगों का तो ये भी कहना है कि अमृता का प्यार एकतरफा था।
(तस्वीर- इमरोज के साथ अमृता)
जीवन के आखिरी समय में सच्चा प्यार उन्हें इमरोज के रूप में मिला। उनकी जीवन के उतर- चढाव को उनकी आत्मकथा के रूप में लिखा गया, खुशवंत सिंह के सुझाव पर उनके जीवनी को रशीदी टिकट नाम दिया गया। इमरोज़ अमृता के जीवन में काफी देर से आए। दोनों ने साथ रहने के फैसला किया और दोनों पहले दिन से ही एक ही छत के नीचे अलग-अलग कमरों में रहे। जब इमरोज ने कहा कि वह अमृता के साथ रहना चाहते हैं तो उन्होंने कहा पूरी दुनिया घूम आओ फिर भी तुम्हें लगे कि साथ रहना है तो मैं यहीं तुम्हारा इंतजार करती मिलूंगी। कहा जाता है कि तब कमरे में सात चक्कर लगाने के बाद इमरोज ने कहा कि घूम लिया दुनिया मुझे अभी भी तुम्हारे ही साथ रहना है।
(तस्वीर-साहिर के साथ अमृता)
अमृता रात के समय शांति में लिखती थीं, तब धीरे से इमरोज चाय रख जाते। यह क्रम लगातार चालीस पचास बरसों तक चला। इमरोज़ जब भी उन्हें स्कूटर पर ले जाते थे और अमृता की उंगलियां हमेशा उनकी पीठ पर कुछ न कुछ लिखती रहती थीं…और यह बात इमरोज भी जानते थे कि लिखा हुआ शब्द साहिर ही है। जब उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया तो इमरोज़ हर दिन उनके साथ संसद भवन जाते थे और बाहर बैठकर उनका घंटों इंतज़ार करते थे। अक्सर वह लोग समझते थे कि इमरोज उनके ड्राइवर हैं। यही नहीं इमरोज ने अमृता के खातिर अपने करियर के साथ भी समझौता किया उन्हें कई ऑफर मिले, लेकिन उन्होंने अमृता के साथ रहने के लिए ठुकरा दिया। गुरुदत्त ने इमरोज को मनमाफिक शर्तों पर काम करने का ऑफर दिया लेकिन अमृता को लगा कि वह भी साहिर कि तरह छोड़ ना जाएँ इसलिए उन्होंने ना जाने का फैसला लिया।
आखिरी समय में फिर जाने के कारण उन्हें चलने फिरने में तकलीफ होती थी तब उन्हें नहलाना, खिलाना, घुमाना जैसे तमाम रोजमर्रा के कार्य इमरोज किया करते थे। 31 अक्टूबर 2005 को अमृता ने आख़िरी सांस ली। 86 साल की उम्र में नई दिल्ली में लंबी बीमारी के चलते नींद में ही उनकी मृत्यु हो गई थी। उनके पीछे वे अपने साथी इमरोज़, बेटी कांदला, बेटे नवराज क्वात्रा, बहु अलका और पोते टोरस, नूर, अमन और शिल्पी को छोड़ गई थीं। लेकिन इमरोज़ का कहना था कि अमृता उन्हें छोड़कर नहीं जा सकती वह अब भी उनके साथ हैं। इमरोज ने लिखा था-
‘उसने जिस्म छोड़ा है, साथ नहीं। वो अब भी मिलती है, कभी तारों की छांव में, कभी बादलों की छांव में, कभी किरणों की रोशनी में कभी ख़्यालों के उजाले में हम उसी तरह मिलकर चलते हैं चुपचाप, हमें चलते हुए देखकर फूल हमें बुला लेते हैं, हम फूलों के घेरे में बैठकर एक-दूसरे को अपना अपना कलाम सुनाते हैं उसने जिस्म छोड़ है साथ नहीं…’