हैप्पी बर्थडे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. केन्द्र की सत्ता में बैठने के बाद 66 वर्षीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना चौथा जन्मदिन मना रहे हैं. जन्मदिन के मौके पर मोदी गुजरात के केवाड़िया में बने सरदार सरोवर बांध को राष्ट्र को समर्पित करेंगे. इसके बाद वह साधू बेट में बन रहे सरदार वल्लभभाई पटेल की 182 मीटर ऊंची प्रतिमा और म्यूजियम का निरीक्षण करेंगे. वहीं केंद्र सरकार पीएम मोदी के जन्मदिन को सेवा दिवस के रूप में मनाते हुए देशभर में स्वच्छता अभियान और टॉयलेट निर्माण के लिए अनेक कार्यक्रम आयोजित करेगी.
पीएम मोदी के जन्मदिवस के मौके पर पीएमओ ने कार्यक्रमों का ऐलान करते हुए कहा है कि पीएम के जन्मदिन पर राष्ट्र को समर्पित किए जाने वाले सरदार सरोवर बांध की हाल में ऊंचाई बढ़ाई गई है. इसका फायदा लगभग 10 लाख किसान और 4 करोड़ आम आदमी को मिलेगा. अब 125 करोड़ की आबादी वाले देश को और क्या-क्या समर्पित किया जाए कि फायदा लगभग सभी तक पहुंच सके.
1. GST के झटके से उबारना
मोदी सरकार ने 1 जुलाई 2017 से देश में नई कर व्यवस्था (जीएसटी) लागू की. इस आर्थिक सुधार से सरकार को उम्मीद थी कि उसके कर राजस्व में इजाफे के साथ-साथ देश में कारोबार करना सहज होगा. यह कर व्यवस्था कारोबारियों के लिए सरल होगी और कारोबार में सकारात्मक दूरगामी परिणाम देखने को मिलेंगे. इन अपेक्षाओं से उलट मौजूदा समय में जीएसटी का नकारात्मक असर अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है.
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इससे जीएसटी पर सवाल भी खड़ा हो रहा है. केन्द्र सरकार ने जीएसटी को बचाने और मौजूदा गतिरोधों को खत्म करने के लिए बिहार के डिप्टी सीएम सुशील मोदी के नेतृत्व में रेस्क्यू टीम का गठन कर दिया है जो इस टैक्स नेटवर्क (जीएसटीएन) की स्क्रूटिनी करेगी. लिहाजा, मोदी सरकार को नई कर प्रणाली को भी देश को समर्पित करने के लिए इसे अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए तैयार करना होगा.
2. नोटबंदी की खरोंच मिटाना
पीएम मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था से कालेधन का सफाया करने के लिए नवंबर 2016 में प्रचलित 500 और 1000 रुपये की करेंसी को प्रतिबंधित कर दिया. इस फैसले से देश में गंभीर करेंसी संकट तो पैदा ही हुआ इसके साथ-साथ कैश पर आधारित सैकड़ों साल पुराने कई कारोबार ठप पड़ने की कगार पर हैं. नोटबंदी के फैसले से देश की जीडीपी पर नकारात्मक असर पड़ा. जहां उत्पादन क्षेत्र फैसले के बाद लगभग ठप पड़ गए वहीं अन्य क्षेत्रों को भी कैशलेस कारोबार में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
हाल में आए आरबीआई के आंकड़े भी साफ कर रहे हैं कि जिस कालेधन को खत्म करने की कवायद में यह फैसला लिया गया वह पूरा का पूरा (99 फीसदी) आम आदमी के खातों के जरिए बैंक में वापस पहुंच गया. इन आंकड़ों ने जानकारों की उस दलील को भी दम दिया कि नोटबंदी केन्द्र सरकार का व्यर्थ फैसला था और इससे देश की अर्थव्यवस्था को चोट पहुंची है. लिहाजा, केन्द्र सरकार की कोशिश अर्थव्यवस्था पर लगी नोटबंदी की खरोंच को जल्द से जल्द भरने के लिए पहल करने की है.
3. उत्पादन क्षेत्र को मजबूत करना
इस क्षेत्र में लेबर की कैश पेमेंट पर असर हुआ. छोटी-बड़ी कंपनियों को अपनी पाई-पाई का डिजिटल हिसाब किताब रखने के लिए विस्तार की चुनौतियों का सामना करना पड़ा. जीएसटी माइग्रेशन के दौरान आर्थिक आंकड़ों में दर्ज गिरावट भी संकेत दे रही कि उत्पादन क्षेत्र पर विपरीत असर से महंगाई दस्तक देगी. लिहाजा, मोदी सरकार के लिए अहम है कि वह नोटबंदी और जीएसटी से घायल पड़े उत्पादन क्षेत्र को जल्द से जल्द मजबूत करने की कवायद करे.
4. नौकरियां ही नौकरियां
देश में उत्पादन क्षेत्र कमजोर पड़ा हो और सेवा क्षेत्र की रफ्तार भी थमने लगे तो मतलब साफ है कि अर्थव्यवस्था में रोजगार के नए संसाधन नहीं पैदा हो रहे हैं. इसके साथ ही यह भी स्पष्ट होता है कि इकोनॉमी में जारी चुनौतियों से बेरोजगारी का संकट गंभीर हो सकता है. केन्द्र सरकार ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) के साथ कई बीमार और कमजोर बैंको का मर्जर करते हुए एशिया स्तर पर एक विशालकाय बैंक खड़ा करने का फैसला लिया है. इस उद्देश्य के बावजूद बैंकिंग क्षेत्र पर नौकरियां खत्म होने का खतरा मंडरा रहा है.
बड़ी संख्या में नई नौकरियों का सृजन कर पाने में फिलहाल डिजिटल इंडिया समेत कई केन्द्रीय योजनाएं विफल हैं. वहीं वैश्विक बाजार में भी भारतीय नागरिकों को अमेरिका, यूरोप समेत खाड़ी देशों में भी रोजगार घटते संसाधन परेशान कर रहे हैं. ऐसी स्थिति में केन्द्र सरकार को कोशिश करनी चाहिए कि जल्द से जल्द देश के अखबारों और सूचना के अन्य साधनों पर नौकरियां ही नौकरियां का बोर्ड लगा दिखने लगे.
5. इंटरलिंकिंग ऑफ रिवर्स
केन्द्र सरकार में इस काम को अंजाम तक पहुंचाने के लिए नए मंत्री नितिन गडकरी नियुक्त किए गए हैं. नितिन गडकरी पर जिम्मेदारी देश की सभी अहम नदियों को आपस में जोड़ने की है (इंटरलिंकिंग ऑफ रिवर्स). इस फैसले से सबसे बड़ा अपेक्षित फायदा यह है कि देश में बाढ़ और सूखे की स्थिति से बेहतर ढ़ंग से निपटने में मदद मिलेगी. इस फैसले से सिंचाई की समस्य़ा को भी हल कर लिया जाएगा और लगभग 20 फीसदी अधिक सिंचित क्षेत्र होगा. इससे लगभग 35 हजार मेगावाट अतिरिक्त बिजली पैदा होगी और जलमार्ग को विकसित किया जा सकेगा.
इन अपेक्षित फायदों के अलावा इस इंटरलिंकिंग के काम में कई खतरे भी अपेक्षित हैं और कई गंभीर चुनौतियां भी हैं. इस प्रोजेक्ट पर 5-6 लाख करोड़ रुपये खर्च होंगे. देश की 60 नदियों को आपस में जोड़ा जाएगा. जानकारों का दावा है कि नदियां अपने आप 100 साल में अपना रास्ता बदलती हैं ऐसे में कोई भी इंटरलिंकिंग प्रोजेक्ट 100 साल से कम ही वर्षों तक काम करेंगे. बड़ी संख्या में डैम, कैनाल और टनल निर्माण से बड़ी संख्या में लोग अपनी जगह से निर्वासित होंगे. वहीं इस प्रोजेक्ट से जल की उत्तमता पर विपरीत असर पड़ेगा. ऐसे में मोदी सरकार को इस प्रोजक्ट पर सोच-समझ कर आगे बढ़ने की जरूरत है जिससे इस काम के फायदे हमेशा नुकसान पर भारी रहें.