नोटबंदी के फैसले से 4 लाख नौकरियों पर पड़ेगा असर!

sad-employeesनई दिल्ली। पीएम मोदी के नोटबंदी के फैसले का असर अब उद्योग धंधों और रोजगार पर नजर आने लगा है। ऐसा माना जा रहा है कि इस फैसले के चलते लोगों की खरीद-फरोख्त का सीधा असर बाजार पर भी पड़ेगा। ऐसे में मांग कम होने पर उत्पादन भी घटेगा और उद्योग धंधों में रोजगार भी कम हो जाएंगे। खासकर क्षम आधारित उद्योग जैसे टेक्सटाइल, गारमेंट्स, लेदर और ज्वैलरी पर इसका सीधा असर पड़ेगा।

खबरों के मुताबिक, उद्योगों की मंदी के इस दौर में 4 लाख से ज्यादा लोगों को अपना रोजगार खोना पड़ सकता है। जिनमें ज्यादातर दैनिक मजदूर और अस्‍थायी कर्मियों पर ही इसका असर पड़ना तय है। भुगतान न होने के कारण इन लोगों के लिए अपनी नौकरियां बचाए रखना मुश्किल है।

एक कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि नकदी के संकट के कारण काफी संख्या में या तो कामगारों ने नौकरी छोड़ दी हैं अस्‍थायी रूप से फिलहाल काम बंद कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि नोटबंदी के बाद यह शुरूआती आंकलन है असली तस्वीर तो कुछ हफ्तों बाद ही साफ हो पाएगी कि कितने लोगों के रोजगार पर इसका असर पड़ता है।

अधिकतर कामगारों के बैंकों में नहीं है खाते

इंजिनियरिंग एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के उपाध्यक्ष रवि सहगल इस संबंध में एक रोचक बात बताते हुए कहते हैं कि भले ही कुछ कामगारों के बैंक अकाउंट हैं लेकिन वे सीधे खाते में भुगतान का विकल्प पसंद नहीं करेंगे उसकी बड़ी वजह ये है कि खाते में 50 हजार से ज्यादा की रकम जाने पर वह गरीबी रेखा के तहत मिलने वाले लाभ से वंचित हो सकते हैं। जिसके तहत उन्हें मिलने वाली तमाम सब्सिडी भी बंद हो सकती है, ऐसे में कोई क्यों चाहेगा कि वो सीधे खाते में अपनी तनख्वाह ले।

उद्योगों को भी इस बात की चिंता सताने लगी है, यही कारण है कि सोमवार को एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ने आर्थिक और औद्योगिक मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात के दौरान कम उत्पादन की चिंता के बारे में बता दिया गया था। बैठक के दौरान ज्यादातर औद्योगिक प्रतिनिधियों ने इस बात के साफ संकेत दिए कि नकदी के संकट के कारण उन्होंने अपना उत्पादन घटाकर आधा कर दिया है या फिर कम करना पड़ा है।

उन्होंने मांग की है कि सरकार हफ्ते में अधिकतम 50 हजार रुपये नकद निकासी की सीमा को और बढ़ा दे जिससे जरूरी व्यापार लेनदेन का संचालन किया जा सके।

रोजाना भुगतान वाले कर्मचारियों की नौकरियों पर आया संकट

औद्योगिक प्रतिनिधियों के अनुसार मोटे तौर पर तीन करोड़ से ज्यादा कामगार टेक्सटाइल और गारमेंट्स सेक्टर में कार्यरत हैं जिनमें से ज्यादातर को दैनिक या साप्ताहिक मजदूरी के तौर पर भुगतान किया जाता है ऐसे में नोटबंदी के कारण उन लोगों के भुगतान पर संकट खड़ा हो गया है।

इसके चलते काफी संख्या में लोगों को अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा है या वो अपने भाग्य को लेकर संशकित हैं। गारमेंट्स इंडस्ट्री के ज्यादातर कर्मचारी तिरपुर जैसे हब में काम करते हैं जिनमें 70 फीसदी से ज्यादा उत्तर और उत्तर पूर्वी राज्यों से आने वाले हैं। कुछ ऐसे ही हालात चमड़ा उद्योग के भी हैं, जिनमें से मोटे तौर पर 2.5 लाख में से 20-25 फीसदी कामगार रोजाना भुगतान वाले हैं, सरकार के इस फैसले से उन्हें भी सीधे तौर पर नुकसान पहुंचा है।

इस उद्योग के लिए यह निर्णय इसलिए भी चिंताजनक है कि 90 फीसदी से ज्यादा उद्योग छोटे और मध्यमवर्ग के हैं। ऐसे में उनका ज्यादातर व्यापार नकदी पर ही टिका होता है, यही हाल आभूषण उद्योग का भी है, जिस पर इस नोटबंदी का ग्रहण साफ दिखाई दे रहा है। इस उद्योग में से 15-20 फीसदी कामगारों को रोजाना भुगतान किया जाता है जो सीधे इस फैसले से प्रभावित हुए हैं।

 

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