12 साल पहले ही PAK ने रची थी कारगिल जंग की साजिश, इस डर से हटा था पीछे

12 साल पहले ही PAK ने रची थी कारगिल जंग की साजिश, इस डर से हटा था पीछे

 

  •  26 जुलाई कारगिल विजय दिवस है. इसी दिन भारतीय सेना ने पाकिस्तान को खदेड़ कर कारगिल की चोटियों पर तिरंगा फहराया था. 1999 के कारगिल सेक्टर में मुजाहिद्दीनों कीशक्ल में पाकिस्तानी सेना के जवानों ने कब्जा कर लिया था.12 साल पहले ही PAK ने रची थी कारगिल जंग की साजिश, इस डर से हटा था पीछे

     8 मई 1999 को पहली बार पाकिस्तानी फौजियों और कश्मीरी आतंकियों को कारगिल की चोटी पर देखा गया था. शुरुआत में खुद भारतीय सेना पाक सैनिकों के इस कब्जे को मानने से इनकार कर रही थी.

    एक्सपर्ट्स के मुताबिक इस जंग में 1984 की घटना ने बड़ी भूमिका निभाई थी. पाक के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल जिया उल हक के वक्त भारतीय सेना ने ऑपरेशन मेघदूत के जरिए सियाचिन पर कब्जा जमा लिया था.

    सियाचिन ऑपरेशन के बाद 1987 में पाक सेना के एक सीनियर ऑफिसर ने जिया के सामने एक प्लान रखा था. प्लान के मुताबिक कारगिल की पहाड़ियों से नेशनल हाईवे दिखता है और यह लेह-लद्दाख को जोड़ता है. इससे होकर सियाचिन की सप्लाई लाइन जाती है.

     हालांकि उस दौरान अफगानिस्तान में पाकिस्तान ने एक मोर्चा खोल रखा था और इसलिए जिया उल हक भारत के साथ युद्ध करने के पक्ष में नहीं थे. जिया उल हक के बाद कारगिल युद्ध का प्रस्ताव बेनेजीर भुट्टो के पास भी रखा गया था.  

    पत्रकार वीर सांघवी को दिए एक इंटरव्यू में पूर्व पाकिस्तान पीएम बेनजीर भुट्टो ने बताया था कि मुशर्रफ ने मेरे सामने युद्ध में जीतने और श्रीनगर पर कब्जे की बात कही थी.बेनजीर ने इसे खारिज कर दिया था. क्योंकि उन्हें डर था कि पाकिस्तान को श्रीनगर से ही नहीं, बल्कि आजाद कश्मीर से भी हाथ धोना पड़ सकता है. उस वक्त मुशर्रफ उस दौरान डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशन्स थे.

    कारगिल सेक्टर में 1999 में भारतीय और पाकिस्तानी सैनिकों के बीच लड़ाई शुरू होने से कुछ हफ्ते पहले जनरल परवेज मुशर्रफ ने एक हेलिकॉप्टर से नियंत्रण रेखा पार की थी और भारतीय भूभाग में करीब 11 किमी अंदर एक स्थान पर रात भी बिताई थी.

    मुशर्रफ के साथ 80 ब्रिगेड के तत्कालीन कमांडर ब्रिगेडियर मसूद असलम भी थे. दोनों ने जिकरिया मुस्तकार नामक स्थान पर रात बिताई थी. साल 2010 में पाकिस्तान ने माना कि इस युद्ध में उसके 453 जवान शहीद हुए थे.

    इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, 24 जून 1999 को करीब सुबह 8.45 बजे जब लड़ाई अपने चरम पर थी. उस समय भारतीय वायु सेना के एक जगुआर ने नियंत्रण रेखा (एलओसी) के ऊपर उड़ान भरी. जगुआर का इरादा “लेजर गाइडेड सिस्टम ” से बमबारी करने लिए टारगेट को चिह्नित करना था. उसके पीछे आ रहे दूसरे जगुआर को बमबारी करनी थी. लेकिन दूसरा जगुआर निशाना चूक गया और उसने “लेजर बॉस्केट” से बाहर बम गिराया जिससे पाकिस्तानी ठिकाना बच गया.

    इसमें पायलट ने LoC के पार गुलटेरी को लेजर बॉस्केट में चिह्नित किया था लेकिन बम निशाने पर नहीं लगा. “बाद में इस बात की पुष्टि हुई कि हमले के समय पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ उस समय गुलटेरी ठिकाने पर मौजूद थे.” हालांकि, बम गिरानेसे पहले इस बात की कोई भी खबर नहीं थी.

     26 जुलाई कारगिल विजय दिवस है. इसी दिन भारतीय सेना ने पाकिस्तान को खदेड़ कर कारगिल की चोटियों पर तिरंगा फहराया था. 1999 के कारगिल सेक्टर में मुजाहिद्दीनों की शक्ल में पाकिस्तानी सेना के जवानों ने कब्जा कर लिया था.

    8 मई 1999 को पहली बार पाकिस्तानी फौजियों और कश्मीरी आतंकियों को कारगिल की चोटी पर देखा गया था. शुरुआत में खुद भारतीय सेना पाक सैनिकों के इस कब्जे को मानने से इनकार कर रही थी.

    एक्सपर्ट्स के मुताबिक इस जंग में 1984 की घटना ने बड़ी भूमिका निभाई थी. पाक के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल जिया उल हक के वक्त भारतीय सेना ने ऑपरेशन मेघदूत के जरिए सियाचिन पर कब्जा जमा लिया था.

    सियाचिन ऑपरेशन के बाद 1987 में पाक सेना के एक सीनियर ऑफिसर ने जिया के सामने एक प्लान रखा था. प्लान के मुताबिक कारगिल की पहाड़ियों से नेशनल हाईवे दिखता है और यह लेह-लद्दाख को जोड़ता है. इससे होकर सियाचिन की सप्लाई लाइन जाती है.

     हालांकि उस दौरान अफगानिस्तान में पाकिस्तान ने एक मोर्चा खोल रखा था और इसलिए जिया उल हक भारत के साथ युद्ध करने के पक्ष में नहीं थे. जिया उल हक के बाद कारगिल युद्ध का प्रस्ताव बेनेजीर भुट्टो के पास भी रखा गया था.  

    पत्रकार वीर सांघवी को दिए एक इंटरव्यू में पूर्व पाकिस्तान पीएम बेनजीर भुट्टो ने बताया था कि मुशर्रफ ने मेरे सामने युद्ध में जीतने और श्रीनगर पर कब्जे की बात कही थी.बेनजीर ने इसे खारिज कर दिया था. क्योंकि उन्हें डर था कि पाकिस्तान को श्रीनगर से ही नहीं, बल्कि आजाद कश्मीर से भी हाथ धोना पड़ सकता है. उस वक्त मुशर्रफ उस दौरान डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशन्स थे.

    कारगिल सेक्टर में 1999 में भारतीय और पाकिस्तानी सैनिकों के बीच लड़ाई शुरू होने से कुछ हफ्ते पहले जनरल परवेज मुशर्रफ ने एक हेलिकॉप्टर से नियंत्रण रेखा पार की थी और भारतीय भूभाग में करीब 11 किमी अंदर एक स्थान पर रात भी 

    मुशर्रफ के साथ 80 ब्रिगेड के तत्कालीन कमांडर ब्रिगेडियर मसूद असलम भी थे. दोनों ने जिकरिया मुस्तकार नामक स्थान पर रात बिताई थी. साल 2010 में पाकिस्तान ने माना कि इस युद्ध में उसके 453 जवान शहीद हुए थे.

    इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, 24 जून 1999 को करीब सुबह 8.45 बजे जब लड़ाई अपने चरम पर थी. उस समय भारतीय वायु सेना के एक जगुआर ने नियंत्रण रेखा (एलओसी) के ऊपर उड़ान भरी. जगुआर का इरादा “लेजर गाइडेड सिस्टम ” से बमबारी करने लिए टारगेट को चिह्नित करना था. उसके पीछे आ रहे दूसरे जगुआर को बमबारी करनी थी. लेकिन दूसरा जगुआर निशाना चूक गया और उसने “लेजर बॉस्केट” से बाहर बम गिराया जिससे पाकिस्तानी ठिकाना बच गया.

    इसमें पायलट ने LoC के पार गुलटेरी को लेजर बॉस्केट में चिह्नित किया था लेकिन बम निशाने पर नहीं लगा. “बाद में इस बात की पुष्टि हुई कि हमले के समय पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ उस समय गुलटेरी ठिकाने पर मौजूद थे.” हालांकि, बम गिरानेसे पहले इस बात की कोई भी खबर नहीं थी.

     
 

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