बोफोर्स तोपों के सौदे के तीन दशक के बाद पहली बार भारतीय सेना में शामिल होने जा रही नई तोप एम 777 हादसे का शिकार हो गई है. सेना के मुताबिक जब राजस्थान के पोखरण फील्ड रेंड में इस गन का ट्रायल हो रहा था, तब यह हादसा हुआ. घटना दो सितंबर की बताई जा रही है. अमेरिका में बनी इस गन से भारतीय गोला बारूद फायर किया जा रहा था. बैरल फटने की वजहों की जांच सेना और अमेरिकी कंपनी की संयुक्त टीम मौके पर मिलकर कर रही है. ये टीम नुकसान का आकलन करेगी. संयुक्त टीम के रिपोर्ट के बाद ही दोबारा फायरिंग शुरू की जाएगी.
ऐसी 145 एम 777 तोपें सेना में शामिल होनी है. अमेरिकी कंपनी बीएई से खरीदी जा रही ये आर्टिलिरी एफएमएस समझौते यानी कि फॉरेन मिलेट्री रुट के तहत मई महीने में दो तोपें ही भारत लाई गई थी. पिछले साल 30 नवंबर को भारत ने इन तोपों को खरीदने के लिए अमेरिका के साथ समझौता किया था.
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17 नवंबर को केंद्रीय कैबिनेट से इस समझौते को मंजूरी मिली थी. बताया जा रहा है कि इन तोपों के भारतीय सेना में शामिल होने के बाद से उसकी ताकत बढ़ जाएगी. खासतौर पर चीन के साथ बढ़ते तनाव के मद्देनजर यह सौदा काफी अहम माना जा रहा है. इन तोपों को चीन से लगी पूर्वी सीमा की पहाड़ियों पर तैनात करने के मद्देनजर खरीदा जा गया है. इसके अलावा बीएई के साथ 145 एम 777 गन को लेकर भी समझौता हुआ. इसके तहत करीब कंपनी 145 गन भारत को सौंपी जाएगी, जिसमें 25 गन कंपनी सीधे सौंपेगी और बाकी महिंद्रा कंपनी की मदद से भारत में ही बनाई जाएंगी.
क्या हैं इस गन की खासियतें
अगर इस गन की खासियत की बात करें तो ऑप्टिकल फायर कंट्रोल वाली हॉवित्ज़र से तक़रीबन 40 किलोमीटर दूर स्थित लक्ष्य पर सटीक निशाना साधा जा सकता है. डिजिटल फायर कंट्रोल वाली यह तोप एक मिनट में पांच राउंड फायर करती है. 155 एमएम की हल्की हॉवित्ज़र सेना के लिए बेहद अहम है, क्योंकि इसको जम्मू-कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में आसानी से हेलीकॉप्टर से कहीं भी ले जाया जा सकता है. सेना में माउंटेन स्ट्राइक कोर के गठन के बाद इस तोप की जरूरत और ज्यादा महसूस की जा रही थी. होवित्जर 155 एमएम की अकेली ऐसी तोप है, जिसका वजन 4200 किलो से कम है. बोर्फोस सौदे में दलाली का आरोप लगने पर देश में 155 एमएम की तोप बनाने की ऑर्डनेन्स फैक्ट्री बोर्ड की कोशिशें उतनी कामयाब नहीं रही हैं. ट्रायल के दौरान गन बैरल फटने की घटनाएं भी सामने आईं थी.
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साल 1980 में हुए स्वीडिश कंपनी से बोफोर्स तोपें खरीदी गई थीं. लेकिन इस सौदे को लेकर काफी विवाद हुआ था और तत्कालीन केंद्र सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लग गया था. उसके बाद से भारतीय सेना के लिए कोई तोप नहीं खरीदा गया. हालांकि कारगिल युद्ध के समय बोफोर्स तोपों के दम पर भारतीय सेना ने पाकिस्तान की सेना को पीछे धकेलने पर मजबूर कर दिया था.