अगर आप भी हैं डिप्रेशन की शिकार, तो इन चीजों का करें सेवन

अगर आप भी हैं डिप्रेशन की शिकार, तो इन चीजों का करें सेवन

डिप्रेशन होने के और भी कई कारण हो सकते है। जिससे बचने के लिए न जाने कितने उपाय और दवाएं लेते है। जिससे कि इस समस्या से निजात मिल जाएं, लेकिन कई बार इसके साइड इफेक्ट भी होते है।अगर आप भी हैं डिप्रेशन की शिकार, तो इन चीजों का करें सेवन

आज का समय में भागदौड़ भरी लाइफ में किसी के पास इतना समय नहीं होता है कि वह खुद या फिर अपने परिवार, दोस्तों के लिए समय निकाल पाएं। जिसके कारण वह धीरे-धीरे अकेला पड़ जाता है और डिप्रेशन की ओर चला जाता है। 

अगर आप भी डिप्रेशन के शिकार है, तो आप सब्जियों का सेवन करना शुरु कर दें। इससे आपको जल्द ही इससे निजात मिल जाएगा। ये बात एक शोध में साबित भी हो चुकी है।  यह तो सभी जानते हैं कि सब्जियां खाना स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है, लेकिन गुरुवार को सिडनी यूनिवर्सिटी की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार, इससे मानसिक तनाव भी दूर होता है।

अध्ययन के लिए कराए गए सर्वेक्षण में 45 साल की उम्र के या इससे ज्यादा उम्र के 60,000 आस्ट्रेलियाई लोगों को शामिल किया गया, उनके ऊपर फलों और सब्जियों के सेवन के प्रभाव को जांचने के लिए 2006-2008 और 2010 दो अलग-अलग सालों में उनके जीवन शैली और मानसिक तनाव को जांचा गया। सामान्य चिंता और अवसाद को मापने वाले 10 अंक के पैमाने पर केसलर स्केल के उपयोग से शोधकर्ताओं ने लोगों द्वारा ग्रहण किए गए सब्जियों और फलों के परिणाम की तुलना की।

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शोधकर्ता डॉ. मेलोडी डिंग ने बताया, लगभग 50 प्रतिशत वयस्कों ने फल खाने के दिशानिर्देश को अपनाया, जबकि सिर्फ सात प्रतिशत ने सब्जियों में रुचि दिखाई अध्ययन के निषकर्ष के मुताबिक, “जो महिलाएं रोजाना 5-7 फलों और सब्जियों का सेवन करती हैं, उनमें तनाव होने की संभावना 23 प्रतिशत कम होती है।”

यहां तक कि सामान्य मात्रा में सबजियों का सेवन करने वाले लोगों के भी तनावग्रस्त होने की संभावना कम होती है। जिन लोगों ने रोजाना 3-4 सब्जियों का सेवन किया, उनमें रोजाना 0-1 सब्जी का सेवन करने वालों के मुकाबले तनाव होने की संभावना 12 प्रतिशत कम होती है।

प्रचलित धारणा के विपरीत, सिर्फ फल तनाव कम करने में महत्वपूर्ण रूप से प्रभावी नहीं है। सब्जियां तनाव कम करने में क्यों कारगर हैं, इसका कारण अभी भी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो पाया है। डिंग ने कहा, “दुर्भाग्य से हमें यह नहीं पता है। हमारे निष्कर्ष जनसंख्या के बड़े आंकड़ों पर आधारित है, हमें इस प्रक्रिया को समझने के लिए अन्य विषयों पर भी काम करना होगा।”

 

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