लेकिन वह हाजिर नहीं हुए। इस पर जस्टिस सैयद मजहर अली अकबर नकवी नाराज हो गए। उन्होंने कहा कि किसी भी नागरिक को लंबे समय तक सिर्फ प्रेस क्लीपिंग्स के आधार पर नजरबंद नहीं रखा जा सकता।
सईद के मामले में सरकार का रवैया यह दिखाता है कि उसके पास ठोस सबूत नहीं हैं। अगर सरकार ने सईद के खिलाफ सबूत पेश नहीं किया तो नजरबंदी के फैसले को खारिज किया जा सकता है।
डिप्टी अटॉर्नी जनरल के साथ पहुंचे गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने अदालत से कहा कि इस्लामाबाद में बेहद जरूरी सरकारी काम में व्यस्त होने की वजह से सचिव अदालत में पेश नहीं हो सके।
सरकारी वकील ने सईद की नजरबंदी के खिलाफ याचिका का जवाब देने के लिए कुछ और समय मांगा। सरकार के इस रवैये को देखते हुए जस्टिस नकवी ने अफसोस जताया कि एक सरकारी आदमी को बचाने के लिए अफसरों की फौज तैनात कर दी जाती है लेकिन अदालत की सहायता के लिए एक अफसर भी मुहैया नहीं कराया जाता।
अदालत की कार्रवाई रोकने की बार-बार दरख्वास्त से नाराज जज ने सुनवाई 13 अक्टूबर तक टाल दी। सईद के वकील ए के डोगर ने कहा सरकार ने जमात-उद-दावा के नेता को अफवाहों और आशंकाओं के आधार पर नजरबंद किया है।
उन्होंने कहा कि जब तक पुख्ता सबूत न हो आप किसी को नजरबंद नहीं रख सकते। हालांकि पंजाब सरकार ने अदालत से कहा है कि सईद को अगर छोड़ा गया तो कानून-व्यवस्था भंग हो सकती है और सार्वजनिक सुरक्षा को खतरा हो सकता है। गौरतलब है कि सईद और उसके चार सहयोगियों को लाहौर में आतंकरोधी कानून के तहत नजरबंद किया गया है।