सिर्फ नाम से ही नहीं हौसले में भी विश्व विजेता सिकंदर की तरह है, 14 वर्षीय किसान सिकंदर सिंह

 सिर्फ नाम से ही नहीं हौसले में भी विश्व विजेता सिकंदर की तरह है पंजाब के  मानसा जिले के गांव बहादुरपुर का 14 वर्षीय किसान सिकंदर सिंह। दूध के दांत भी नहीं टूटे थे कि मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। करीब 11 वर्ष का था, जब कर्ज के कारण उसके किसान माता-पिता ने खुदकशी कर ली। विरासत में मासूम बेटे पर नाै लाख रुपये का कर्ज और बूढ़ी दादी की जिम्मेदारी छोड़ गए। कर्जदाताओँ ने उसके घर पर कब्जा कर लिया और रोजी-रोटी का सहारा एक भैंस भी लेकर चले गए। इससे सिकंदर बेघर होकर दादी के साथ रिश्तेदार के यहां शरण लेने को मजबूर हो गया। पढ़ाई भी छूट गई।

कर्ज की वजह से खुदकशी की थी माता-पिता ने, कर्ज उतार अपना और दादी का पालन पोषण कर रहा सिकंदर

जिंदगी के इस मोड़ पर हर किसी ने उसका साथ छोड़ दिया। एक तरफ लाखों का कर्ज सिर पर था तो दूसरी तरफ अपना और अपनी दादी का पालन-पोषण भी करना था। उसे कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। सिकंदर से सबकुछ छिन गया था, पर उसका हौसला अब भी उसके पास था। उसने हिम्मत नहीं हारी और अपनी बाकी जमीन पर खेती करने लगा। किसी तरह कर्ज पर भैंस भी ले ली और दूध बेचने लगा।

जिंदगी की गाड़ी पटरी पर आने लगी। कुछ समाजसेवी संस्थाओं और एनआरआइ ने कर्ज उतारने में भी उसकी सहायता की। अब उसने अपने सिर से पूरा कर्ज उतार दिया है। खेती करने के साथ ही वह अब पढ़ाई भी करने लगा है। वह दसवीं कक्षा में है। आज बेशक उसके सिर पर रहने को छत नहीं है, मगर इरादे पहाड़ की तरह मजबूत हैं।

तड़पा जाती हैं पुरानी यादें…

पुरानी बातें याद आती हैं तो सिकंदर की आंखें नम और चेहरा उदास हो जाता है। वह कहता है कि पापा ने कपास की फसल के लिए कर्ज लिया था। फसल खराब हो गई तो पापा परेशान रहने लगे। कहते थे कि कपास की फसल खराब हो गई है। कर्ज के पैसे कैसे लौटाऊंगा। इसी गम में वह परेशान रहने लगे थे। वह शराब भी पीने लगे थे। इसी परेशानी में उन्होंने खुदकशी कर ली। मां ने भी पिता के गम में दुनिया छोड़ दी।

बकौल सिकंदर, इस हादसे ने मेरा बचपन छीन लिया। एक बार तो सोचा कि मैं जिंदा क्यों हूं। मुझे भी माता-पिता के साथ ही इस दुनिया को छोड़ देना चाहिए था। फिर मुझे दादी का खयाल आया। मैंने यह भी सोचा कि पिता के सिर से कर्ज का दाग छुड़ा कर ही दम लूंगा। इसके बाद मैंने पढ़ाई छोड़ दी और खेती करने लगा। रोज का खर्च चलता रहे, इसलिए कर्ज लेकर एक भैंस भी खरीद ली।

सिकंदर कहता है, कुछ दयालु एनआरआइ ने मेरी मदद की और पिता का सारा कर्ज अब मैंने चुका दिया है। ठंडी सांस भरकर वह कहता है, अब मैं कुछ बनकर दिखाऊंगा, ताकि मेरे माता-पिता की आत्मा को शांति मिले। दादी सुरजीत कौर बताती हैं कि सिकंदर अन्य बच्चों से अलग है। स्कूल से आने के बाद वह काम में लग जाता है। दूसरे बच्चों की तरह खेलने नहीं जाता है।

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