लखनऊ। प्रदेश सरकार ने बुधवार को लोकभवन में देवभाषा व सभी भाषाओं की जननी मानी जाने वाली संस्कृत के साधकों को सम्मानित किया। राज्यपाल राम नाईक की मौजूदगी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक साथ वर्ष 2016 और 2017 के लिए ये पुरस्कार दिये। उप्र संस्कृत संस्थान की ओर से दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान विश्वभारती स्व. जगन्नाथ पाठक और आचार्य केशवराव सदाशिवशास्त्री मुसलगांवकर को मिला। जगन्नाथ पाठक की पुत्री हेमा सरस्वती ने उनकी जगह पुरस्कार ग्रहण किया।
नारे और भाषण से नहीं होने वाला संस्कृत का भला
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि संस्कृत की दुर्गति के लिए इससे जुड़े लोग ही जिम्मेदार हैं। स्कूलों की मान्यता तो है, पर न पढऩे वाले हैं न पढ़ाने वाले। इनमें नकल को प्रोत्साहन मिलता है। तमाम केंद्र तो डिग्री बांटने के केंद्र बन गए हैं। मंचों पर भाषण और नारे देने से संस्कृत का भला होने से रहा। अपने आप में नजीर बनना होगा। संस्कृत की पैरवी करेंगे और बच्चे को कान्वेंट भेजेंगे तो संस्कृत का भला होने से रहा। 17 साल में माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद का गठन हो सका। वह भी तब जब मैंने लगातार इसकी मानीटरिंग की। गठन तो हो गया, पर काम ठीक होगा, इसे लेकर अब भी मुझे संशय है।
संस्कृत के पक्ष में माहौल बनाएं, सरकार मदद देगी
मुख्यमंत्री ने कहा कि संस्कृत के पक्ष में माहौल बनाना होगा। किसी बोर्ड या किसी माध्यम का स्कूल हो, प्रयास यह करें कि सबके बच्चे संस्कृत बोल और समझ सकें। इसके लिए संस्थान को छुट्टियों के दौरान स्कूलों में संस्कृत संभाषण के कैंप लगाएं। नए और पुराने के मिलन से ही विकास होगा। संस्कृत के हमारे ग्रंथों में सब कुछ है। इन ग्रंथों में जहां विज्ञान की सीमा समाप्त होती है उससे भी आगे की कल्पना की गई है। जरूरत तलाश करने की है। आप आगे आएंगे तो सरकार संस्कृत के संरक्षण में हर संभव मदद करेगी।
राजभवन से लोकभवन ही संस्कृत की असली मंजिल: राज्यपाल
राज्यपाल राम नाईक ने कहा कि संस्कृत को राजभवन से लोकभवन लाने की जरूरत है। यही उसकी असली जगह है। संस्कृत का भला हमें ही करना होगा। कोई बाहर से आकर करने से रहा। शुरुआत उप्र से ही होनी चाहिए। उप्र में कुछ होता है तो ऐसा लगता है कि पूरे देश में कुछ हो रहा है। इस कार्यक्रम का भी यही संदेश जाएगा। राज्यपाल ने कहा कि कम शब्दों में संस्कृत के संप्रेषण की क्षमता अद्भुत है। सरकार, सुप्रीम कोर्ट, महाराष्ट्र पुलिस के ध्येय वाक्य संस्कृत में ही हैं। राज्यपाल ने कहा कि मेरी पुस्तक चरैवेति चरैवेति का संस्कृत अनुवाद हो चुका है। मार्च में वाराणसी में राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद इसका लोकार्पण करेंगे। गुरुकुल प्रभात आश्रम मेरठ के कुलपति ने कहा संस्कृत और संस्कार एक दूसरे के पूरक हैं। संस्कृत के वजूद पर ही देश का वजूद निर्भर है। अगर संस्कृत जय होगी तो देश की भी जय होगी। भाषा विभाग के प्रमुख सचिव जितेंद्र कुमार ने आभार जताया। कार्यक्रम में सरकार के मंत्री और अन्य गणमान्य लोग मौजूद थे।
प्रो.आजाद मिश्र मधुकर को मिले तीन पुरस्कार
देवरिया जिले के परसिया मिश्र निवासी प्रो.आजाद मिश्र मधुकर को उप्र संस्कृत संस्थान के तीन पुरस्कार मिले हैं। महर्षि व्यास, नामित और विविध पुरस्कार के रूप में उनको क्रमश: दो लाख 10 हजार, 51 हजार और 11 हजार रुपये के पुरस्कार मिले हैं। प्रो. मिश्र की प्रारंभिक शिक्षा गांव से ही हुई। संस्कृत की शिक्षा उन्होंने अजमेर, बीकानेर और वाराणसी से ग्रहण की। बीकानेर के शार्दुल संस्कृत विद्यापीठ, गंगानाथ झा शोध संस्थान इलाहाबाद, लखनऊ केंद्रीय संस्कृति विद्यापीठ और भोपाल राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान भोपाल में उन्होंने शिक्षण भी किया है। प्रो. मिश्र को इसके अलावा अन्य कई सम्मान भी मिल चुके हैं। कई पुस्तकें लिखने वाले प्रो. मिश्र के निर्देशन में 15 से अधिक शोध छात्रों को पीएचडी मिल चुकी है। मौजूदा समय में वह यहां गोमतीनगर के विराम खंड में रहते हैं।
उप्र संस्कृत संस्थान से पुरस्कृत लोग
विश्वभारती : आचार्य स्व.जगन्नाथ-सासाराम बिहार, आचार्य केशवराव सदाशिवशास्त्री मुसलगांवकर-ग्वालियर दतिया।