New Delhi: रावण को रामायण के सबसे बड़े खलनायक के रूप में देखा जाता है। कहा जाता है कि धरती को रावण के आतंक से मुक्त करवाने के लिए ही प्रभु श्रीराम ने जन्म लिया था। वहीं दूसरी तरफ रावणसंहिता में कहा गया है कि रावण ज्ञानी होने के साथ इतना बलशाली था कि उसे हराना आसान नहीं था।अभी-अभी: संयुक्त राष्ट्र ने भारत को बताया सबसे सुरक्षित देश, कहा- यहां सभी धर्मों के लोग…
लेकिन रावण के दुष्कर्म भी कम न थे। अपने बल को बढ़ाने के लिए वो हमेशा साधुओं की हत्या किया करता था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रावण श्रीराम से ही नहीं बल्कि अन्य 4 योद्धाओं से भी पराजित हुआ था। आइए, हम बताते हैं आपको इन 4 महायोद्धाओं के बारे में।
बालि
एक बार रावण बालि से युद्ध करने के लिए गया। बालि उस समय पूजा कर रहा था। रावण बार-बार बालि को ललकार रहा था, जिससे बालि की पूजा में बाधा उत्पन्न हो रही थी।
जब रावण नहीं माना तो बालि ने उसे अपनी बाजू में दबा कर चार समुद्रों की परिक्रमा की थी। इस दौरान रावण को चुप होता न देखकर बालि ने रावण को अपनी बाजूओं में दबाकर परिक्रमा की। इसके बाद उसे धरती पर पटक दिया।
सहस्त्रबाहु
सहस्त्रबाहु अर्जुन के एक हजार हाथ थे और इसी वजह से उसका नाम सहस्त्रबाहु पड़ा था। जब रावण सहस्त्रबाहु से युद्ध करने पहुंचा तो सहस्त्रबाहु ने अपने हजार हाथों से नर्मदा नदी के बहाव को रोक दिया था।
सहस्त्रबाहु ने नर्मदा का पानी इकट्ठा किया और पानी छोड़ दिया, जिससे रावण पूरी सेना के साथ ही नर्मदा में बह गया था। पराजित होने के बाद भी रावण ने हार नहीं मानी और एक बार फिर से लड़ने के लिए उठा, लेकिन इस बार भी सहस्त्रबाहु ने रावण को जेल में डाल दिया।
दैत्यराज बलि
दैत्यराज बलि पाताल लोक के राजा थे। एक बार रावण राजा बलि से युद्ध करने के लिए पाताल लोक में उनके महल तक पहुंच गया था। वहां पहुंचकर रावण ने बलि को युद्ध के लिए ललकारा। उस समय बलि के महल में खेल रहे बच्चों ने ही रावण को पकड़कर घोड़ों के साथ अस्तबल में बांध दिया था। इस तरह रावण को पराजय मिली।
शिवजी
एक बार रावण घमंड के नशे में शिवजी को हराने के लिए कैलाश पर्वत पर पहुंच गया। रावण ने शिवजी को युद्ध के लिए ललकारा, लेकिन महादेव तो ध्यान में लीन थे। रावण कैलाश पर्वत को उठाने लगा।
तब शिवजी ने पैर के अंगूठे से ही कैलाश का भार बढ़ा दिया, इस भार को रावण उठा नहीं सका और उसका हाथ पर्वत के नीचे दब गया। इसके बाद शिवजी को प्रसन्न करने के लिए रावण ने उनकी स्तुति की। इसके बाद शिवजी ने उसे मुक्त कर दिया।