14 फरवरी को पूरी दुनिया वैलेंटाइन डे को प्यार के दिवस के रूप में मनाती है, इस दिन प्रेमी युगल अपने प्रेमियों से मिलते हैं और प्रेम, रोमांस के सागर में गोते लगाते हैं. किन्तु अगर इस दिवस के अतीत पर गौर किया जाए तो यह बड़ा ही भयानक और विकृत है. इस दिवस की शुरुआत रोम से हुई थी. 13 से 15 फरवरी तक रोम के लोग लुपेर्केलिया नामक त्यौहार मनाते थे, जिसमे पुरुष पहले एक कुत्ते और बकरे की बलि देते थे और उसकी खाल से महिलाओं को पीटा जाता था. यही त्यौहार बाद में रोमन के ही संत वैलेंटाइन के नाम से जाना जाने लगा. 
नोएल लेंसकी नमक एक ख्यात इतिहासकार ने कहा है कि इस दिन रोमन नग्न रहते थे और खूब शराब पीते थे. प्राचीन समय में रोम के लोग इस दिन एक जार में महिलाओं के नाम लिखकर डाल देते थे, उसके बाद हर पुरुष उसमे से अपना पार्टनर चुनता था और यह पार्टनर कितनी देर तक साथ रहेंगे इस बात का फैसला वे ही करते थे. लेंसकी बताते हैं कि इस दिन कुंवारी लड़कियों को लाइन में खड़ा कर दिया जाता था, जिसे पुरुष पीटते थे, उनका मानना था कि इससे वे प्रजननक्षम बनेंगी.
इसी के आस पास नोमंस के लोग Galatin day मनाते थे, जिसमे Galatin का मतलब “औरतों का प्रेमी” होता था. इसके बाद 13 से 15 शताब्दी के आस पास शकेस्पेयर और चौसर ने वैलेंटाइन डे को अपने नाटकों में स्थान देकर ब्रिटैन में लोकप्रिय कर दिया, जहां से यह दुनिया भर में फैल गया. इसके बाद तो इस दिन को व्यावसायिक बना दिया गया.
इस दिन के इतिहास से यह तो माना जा सकता है कि यह दिन प्रेम का नहीं बल्कि वासना का है, जिसका भारतीय संस्कृति में कोई स्थान नहीं है, किन्तु फिर भी हमारी नई पीढ़ी ने पाश्चात्य सभ्यता के पैर इतने कसकर पकड़े हैं कि उन्हें उस सभ्यता का नक़ाबपोश चेहरा साफ़ नज़र नहीं आता.
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