लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर तनाव बरकरार है. चीन ने पीछे हटने का वादा किया था, लेकिन कल की सैटेलाइट इमेज से साफ हुआ है कि गलवान नदी के किनारे चीनी कैंप, जेसीबी मशीनें और चीनी सेना की गाड़ियां अभी भी मौजूद हैं. सवाल उठता है कि आखिर सहमति के बावजूद चीनी सेना की गाड़ियां और जेसीबी मशीनें वहां से क्यों नहीं हटी हैं?
28 जून की सैटेलाइट तस्वीर में चीनी सेना की गाड़ियां, जेसीबी मशीनें और कैंप अभी भी वहां मौजूद हैं, जबकि चीन ने इन्हें हटाने का वादा किया था. साफ है कि चीन आसानी से पीछे हटने को तैयार नहीं है. क्या यह चीनी सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की कोई नई चाल है?
गौरतलब है कि गलवान वैली में 15 जून की रात चीन ने जो विश्वासघात किया उसका भारत के वीर सैनिकों ने तो मुंहतोड़ जवाब दे दिया. अब बारी दूसरे तरीके से जवाब देने की है और वो है लद्दाख में चीन से सटे इलाकों का विकास. वहां बुनियादी ढांचे को मजबूत करना. सड़कों और सुविधाओं का बढ़ाने के लिए सरकार की तरफ से कोशिशें तेज हो गई हैं.
15 जून की हिंसक झड़प के बाद गलवान नदी पर एक बैली ब्रिज समेत पुल और पुलिया का निर्माण रिकार्ड समय में हुआ है. भारत ने चीन से ये साफ कर दिया है कि उत्तरी लद्दाख में हाईवे बनाने समेत बुनियादी ढांचों के निर्माण का काम वो जारी रखेगा. इसी को ध्यान में रखते हुए पिछले कुछ दिनों में चार बोर्डर रोड प्रोजेक्ट शुरू किए गए हैं.
इसे लेकर सरकार का फैसला बेहद साफ है कि नागरिक और सैन्य बुनियादी ढांचे के निर्माण में कोई समझौता नहीं होगा. तनाव घटाने के लिए बेशक बातचीत जारी रहेगी, लेकिन भारत अपनी सीमा में सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं के निर्माण में कोई समझौता नहीं करेगी.
भारत के इसी संकल्प ने चीन को खौफ में भर रहा है. पीछे हटने पर सहमति के बाद गलवान नदी से चीनी सैनिक तो पीछे हटे हैं, लेकिन उनके टैंट और साजो सामान मौजूद हैं.
कल की सैटेलाइट इमेज से इसकी पुष्टि हो रही है. चीनी कैंप, हैवी व्हीकल्स और जेसीबी मशीनें हैं, लेकिन हैरानी देखिये सारे साजो-सामान स्थिर हैं. कोई मूवमेंट नहीं है.