सूत्रों का दावा, अंतिम दौर में पहुंचे सौदे की प्रक्रिया को लेकर तत्कालीन रक्षा मंत्री को था गड़बड़ी का संदेह
राफेल करार के मुद्दे पर कांग्रेस मोदी सरकार पर लगातार हमले कर रही है। पार्टी का दावा है कि उसके शासनकाल में जिस करार पर बात हुई थी वह मोदी सरकार के करार की तुलना में काफी किफायती था। मोदी सरकार ने फ्रांस से 58,000 करोड़ रुपये की लागत से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने का करार किया है।
सूत्रों के अनुसार, हो सकता है एंटनी की आशंकाएं सही रही हों और मामले में दखल देने के पीछे उनके तर्क ठोस हों। तत्कालीन रक्षा मंत्री से मंजूरी मिलने के बाद कीमत के बाबत बातचीत करने वाली समिति उस वक्त करार का परीक्षण कर रही थी। उन्होंने यह भी कहा कि राफेल को ‘एल 1’ वेंडर घोषित किए जाने के बाद ‘यूरोफाइटर टाइफून’ ने अपनी कीमतों में 25 फीसदी कमी लाने की पेशकश की थी।
एक सूत्र ने कहा, तय प्रक्रिया के मुताबिक बोली लगाने वाले विजेता का एलान करने के बाद ऐसा प्रस्ताव कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता था। आप ऐसा नहीं कर सकते। राफेल करार में घोटाले का आरोप लगाते हुए कांग्रेस मोदी सरकार से पूछ रही है कि क्या राफेल विमान की कीमत (12 दिसंबर 2012 को खुली अंतरराष्ट्रीय बोलियों के मुताबिक) 526.1 करोड़ रुपये है या मोदी सरकार के करार में (मौजूदा लेन-देन दरों के मुताबिक) प्रत्येक विमान की कीमत 1,570.8 करोड़ रुपये है।
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