कालेधन पर अंकुश लगाने के लिए नोटबंदी कारगर साबित हुई है। यूपी और उत्तराखंड में ही एक साल के दौरान कालाधन सफेद करने वाली आठ हजार कंपनियों पर शिकंजा कसा गया है। इनमें से कानपुर की ही लगभग 700 कंपनियां हैं। शहर स्थित रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज ने शेल कंपनियों की आशंका में इन पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया है। इन आठ हजार कंपनियों के 12 हजार से अधिक निदेशकों को अयोग्य घोषित कर दिया गया है। ये पांच साल तक किसी भी कंपनी के निदेशक के तौर पर काम नहीं कर सकेंगे। रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज कार्यालय के सूत्र बताते हैं कि जिन आठ हजार कंपनियों पर कार्रवाई की गई है वे बीते दो-तीन साल से निष्क्रिय थीं, लेकिन नोटबंदी के दौरान इनकी सक्रियता देखी गई। इन कंपनियों के खातों में भारी भरकम रकम जमा हुई थी। इनकी पड़ताल की गई तो पता चला कि कैश जमा करने के अलावा इन कंपनियों की कोई सक्रियता नहीं रही। इनके निदेशकों की ओर से बीते दो तीन साल से फाइनेंशियल स्टेटमेंट भी दाखिल नहीं किया गया। इसी आशंका पर जांच हुई तो प्रथम दृष्टया ये फर्जी पाई गईं।
जब्त होंगी संपत्तियां
रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के सूत्र बताते हैं कि प्रतिबंधित की गईं कंपनियां अपनी संपत्तियों की बिक्री नहीं कर सकेंगी। कालेधन से तैयार की गईं इन कंपनियों की संपत्ति को सरकार जब्त करने पर विचार कर रही है। वित्त मंत्रालय से निर्देश मिलते ही इन पर आगे की कार्रवाई शुरू होगी। दोषियों के खिलाफ कई स्तर पर शिकंजा कसा जाएगा।
कानपुर है शेल कंपनियों का गढ़
कानपुर शेल कंपनियों का गढ़ है। नोटबंदी के बाद यह बात पुख्ता हो गई। खातों में भारी भरकम रकम जमा होने के बाद रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज ने यहां की करीब सात सौ कंपनियों को प्रतिबंधित किया है। आरओसी के सूत्र बताते हैं शहर में इतनी ही फर्जी कंपनियां विभाग के रडार पर हैं। यूपी और उत्तराखंड में प्रतिबंधित आठ हजार कंपनियों में से सात हजार यूपी की हैं। इनमें से सात सौ कानपुर की हैं।
कालेधन के खिलाफ सरकार कड़े एक्शन के मूड में है। आने वाले समय में बाजार में वही टिकेगा जिसका काम साफ सुथरा है। फर्जी कंपनियों पर कड़ी कार्रवाई की तैयारी चल रही है। वित्त मंत्रालय से निर्देश मिलने का इंतजार है। -पुनीत दुग्गल, रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज
किसे कहते हैं शेल कंपनियां
शेल कंपनियां वे कंपनियां होती हैं जो प्राय: कागजों पर चलती हैं। ये पैसे का भौतिक लेनदेन नहीं करतीं लेकिन मनी लांड्रिंग का आसान जरिया बनती हैं। इन्हें मुखौटा या फर्जी कंपनियां भी कहते हैं। इनका अस्तित्व केवल कागजों पर ही होता है। इनका कोई आधिकारिक कारोबार भी नहीं होता। ये कंपनियां न्यूनतम पेड अप कैपिटल के साथ काम करती हैं। डिविडेंड इनकम जीरो होती है। टर्नओवर और ऑपरेटिंग इनकम भी बहुत कम होती है। कहा जाता है कि काले धन को सफेद करने के लिए बड़े पैमाने पर शेल कंपनियों का इस्तेमाल किया जाता है।