मंत्र जप, राशि, ज्योतिष, धर्म कार्य आदि का हिंदू धर्म में खासा महत्व है। आज आपको बताते हैं मंत्र जप के बारे में, जिसके दौरान माला के 108 मोतियों का जाप यूं ही नहीं किया जाता बल्कि इसके पीछे कुछ खास कारण हैं जिन्हें जान लेना आपके लिए बेहद जरूरी
क्या कभी आपने सोचा है कि मंत्र का जप करने के लिए जिस माला का प्रयोग किया जाता है, उसमें 108 मोतियां होती हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर इन मोतियों की संख्या 108 ही क्यों होती है। आइए जानते हैं –
ज्योतिष के अनुसार ब्रह्मांड को 12 भागों में विभाजित किया गया है। इन 12 भागों के नाम मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन हैं।
इन 12 राशियों में नौ ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु विचरण करते हैं। अत: ग्रहों की संख्या 9 का गुणा किया जाए राशियों की संख्या 12 में तो संख्या 108 प्राप्त हो जाती है।
मान्यता के अनुसार माला के 108 दाने और सूर्य की कलाओं का गहरा संबंध है। एक साल में सूर्य 216000 कलाएं बदलता है और वर्ष में दो बार अपनी स्थिति भी बदलता है। 6 माह उत्तरायण रहता है और 6 माह दक्षिणायन। सूर्य 6 माह की एक स्थिति में 108000 बार कलाएं बदलता है।
इसी संख्या 108000 से अंतिम तीन शून्य हटाकर माला के 108 मोती निर्धारित किए गए हैं। माला का एक-एक दाना सूर्य की एक-एक कला का प्रतीक है। सूर्य ही एकमात्र साक्षात दिखने वाले देवता हैं, इसी वजह से सूर्य की कलाओं के आधार पर दानों की संख्या 108 निर्धारित की गई है।
इसके अलावा माला के दानों से मालूम हो जाता है कि मंत्र जप की कितनी संख्या हो गई है। जप की माला में सबसे ऊपर एक बड़ा दाना होता है जो कि सुमेरू कहलाता है। सुमेरू से ही जप की संख्या प्रारंभ होती है और यहीं पर खत्म भी। जब जप का एक चक्र पूर्ण होकर सुमेरू दाने तक पहुंच जाता है तब माला को पलटा लिया जाता है। सुमेरू को लांघना नहीं चाहिए।