महाराष्ट्र की भाजपा सरकार ने करीब 40 साल पहले आपातकाल में एक माह से अधिक समय तक जेल में रहे लोगों को दस हजार रुपये की मासिक पेंशन देने का फैसला किया है। यह पेंशन योजना भाजपा की प्रमुख योजनाओं में से एक होगी।
अधिकारियों के अनुसार बुधवार को कैबिनेट की उप समिति ने एक माह से कम समय तक जेल में कैद रहे लोगों को पांच हजार रुपये की मासिक पेंशन देने का फैसला किया है। सरकार ने यह कदम उन लोगों के सम्मान में लिया है जिन्होंने 21 माह चले आपातकाल (1975 से 1977) के दौरान संघर्ष किया है।
जल्द की जाएगी पेंशन की घोषणा
महाराष्ट्र के राजस्व मंत्री चंद्रकांत पाटिल और खाद्य व नागरिक आपूर्ति मंत्री गिरीश बापत इस बैठक में मौजूद थे। समिति ने यह भी फैसला लिया है कि उन लोगों की विधवाओं को पांच हजार रुपये की पेंशन दी जाएगी जो उस समय एक माह से अधिक समय तक जेल में कैद थे। उन विधवाओं को 2500 रुपये की मासिक पेंशन मिलेगी जिनके पति एक माह से कम समय के लिए जेल में बंद थे। सरकार ने पेंशन देने के लिए कई मानक तैयार किए हैं। इसकी घोषणा भी जल्द ही की जाएगी।
1971 में पाकिस्तान की करारी हार के बाद इंदिरा गांधी की लोकप्रियता शिखर पर थी। करीब तीन साल बाद 1974 में भारत मे पोखरण परमाणु परीक्षण के जरिए ये साबित कर दिया कि भारत महज कृषि प्रधान देश नहीं है, बल्कि वो अपने दम पर विकसित देशों का मुकाबला कर सकता है। लेकिन एक सच ये भी था कि इंदिरा गांधी की लोकप्रियता में गिरावट भी आ रही थी। 1974 के बाद विरोधी दल के नेता उन पर जबरदस्त हमला कर रहे थे। इंदिरा गांधी को लगने लगा था कि उनके खिलाफ साजिश रची जा रही है। अपने सलाहकारों पर भरोसा कर उन्होंने 1975 में देश में आपातकाल की घोषणा की। हालांकि ये प्रयोग कामयाब नहीं रहा। आम चुनाव में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो चुकी थी। जनता पार्टी की सरकार ने आपातकाल में इंदिरा की भूमिका के लिए शाह आयोग का ऐलान किया। शाह आयोग ने माना कि आपातकाल एक सनकभरा फैसला था। लेकिन 1978 में थेम्स टीवी को दिए साक्षात्कार में इंदिरा गांधी ने कहा कि उन्होंने जो भी फैसले लिए वो राजनीति से प्रेरित नहीं थे, बल्कि हालात ही ऐसे बन गए थे कि अप्रिय और कठिन फैसले लेने पड़े।