भूटान पूरी दुनिया में ख़ुशहाल मुल्क के रूप में पहचाना जाता है, भूटान के बारे में कहा जाता है कि भूटान की प्रगति का दर्शन जीडीपी (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्शन) नहीं जीएनच (ग्रॉस नेशनल हैपिनेस) है. लेकिन इसका मतलब यह क़तई नहीं है कि भूटानी नागरिक अवसाद और मानसिक विकार से मुक्त हैं, वे भी इन सब चीज़ों से पीड़ित हैं.
देश की राजधानी थिम्पू स्थित नेशनल रेफ़रल हॉस्पिटल के रिकॉर्ड से पता चलता है कि यहां व्यग्रता और अवसाद सबसे सामान्य मानसिक समस्याएं हैं. 2017 में भूटान से मानसिक बीमारी से जुड़े 4,200 मामले सामने आए थे. साथ ही यहाँ इन मानसिक बिमारियों के कारण हर साल आत्महत्या करने वालों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है. भूटान की आबादी मुश्किल से 10 लाख के करीब है, इसके बाद भी अगर यहां सैकड़ों लोग ख़ुदकुशी करते हैं तो जनसंख्या के अनुपात में ये आंकड़ा बहुत अधिक है.
एक रिपोर्ट के अनुसार इस देश में केवल चार मनोचिकित्सक हैं और कोई मनोवैज्ञानिक नहीं है. इसके साथ ही सारे मनोचिकित्सक भी राजधानी थिम्पू में ही हैं, बाकि के राज्यों में कोई मनोचिकित्सक नहीं है. हाल के दिनों में भूटान की सरकार ने मानसिक सेहत पर बजट में भी बढ़ोतरी की है. भूटान के स्वास्थ मंत्रालय ने अगले पांच साल के लिए मानसिक स्वास्थ्य पर 6 करोड़ के बजट का प्रस्ताव रखा है, सरकार को उम्मीद है कि इससे वे मानसिक बिमारियों पर लगाम कस पाएंगे.
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