विश्व में लंपी वायरस यह पहली बार 1931 में फैला था और भारत में इसका कहर 2019 के बाद से नजर आया इसलिए विज्ञानियों ने इस वायरस की पहचान तो कर ली लेकिन वैश्विक स्तर पर इस पर विशेष शोध नहीं हुआ था कि इसे कैसे रोका जाए। भारत में मवेशियों में फैले लंपी वायरस की उत्पत्ति और जिम्मेदार कारकों को पता लगाने में जुटी बहु संस्थागत टीम
मई 2022… पूरे देश में एक लाख से अधिक मवेशी की मौत हुई थी। विज्ञानियों के अनुसार यह एक देशव्यापी आपदा थी और इसे लंपी वायरस का कहर बताया गया था। विश्व में यह पहली बार 1931 में फैला था और भारत में इसका कहर 2019 के बाद से नजर आया, इसलिए विज्ञानियों ने इस वायरस की पहचान तो कर ली लेकिन वैश्विक स्तर पर इस पर विशेष शोध नहीं हुआ था कि इसे कैसे रोका जाए।
इसके मद्देनजर बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (आइआइएससी) की एक बहु संस्थागत टीम ने शोध किया इस बीमारी को बढ़ावा देने के लिए कौन से कारक जिम्मेदार हैं और इसकी उत्पत्ति कैसे हुई। प्रारंभिक शोध में पता चला कि भारत में हुए प्रकोप के लिए दो अलग-अलग वैरिएंट जिम्मेदार है। यह अध्ययन ‘बीएमसी जीनोमिक्स’ में प्रकाशित हुआ था।
- भारत में मवेशियों में फैले लंपी वायरस की उत्पत्ति और जिम्मेदार कारकों को पता लगाने में जुटी बहु संस्थागत टीम
- टीम ने कई राज्यों से संक्रमित मवेशियों की त्वचा की गांठें, रक्त और नाक के नमूने एकत्र किए
- 22 नमूनों से निकाले गए डीएनए ने अपग्रेड जीनोम सिक्वेंसिंग का प्रदर्शन किया
- 2022 के बाद से लगभग एक लाख गायें लंपी वायरस के कारण गंवा चुकी हैं जान
विश्व में फैला संक्रमण
- 1931 में जांबिया में पाया गया था पहली बार एलएसडी
- 1989 तक उप अफ्रीकी क्षेत्र तक ही सीमित रहा। इसके बाद दक्षिण एशिया में फैलने से पहले यह मध्य पूर्व, रूस और अन्य दक्षिण-पूर्व यूरोपीय देशों में फैलना शुरू हो गया।
टीम ने वायरस के कारणों की जांच करने का निर्णय लिया
- आइआइएससी के बायोकेमिस्ट्री विभाग के प्रोफेसर उत्पल टाटू इस बहु संस्थागत शोध टीम का हिस्सा हैं। इस टीम ने बीमारी के कारणों की जांच करने का निर्णय लिया है। लंपी स्किन डिजीज वायरस (एलएसडी) एक वायरल संक्रमण मक्खियों और मच्छरों जैसे कीड़ों द्वारा फैलता है।
- यह बुखार और त्वचा पर गांठों का कारण बनता है और मवेशियों के लिए घातक हो सकता है। इस अध्ययन में आणविक जीवविज्ञानी, कम्प्यूटेशनल विशेषज्ञ और पशु चिकित्सक सहित कई विषयों की टीमें एक साथ आईं और उन्होंने शोध किया। समूह ने कोविड-19 और रैबीज वायरस पर एैसे अध्ययन किए हैं।
भारत में कहर
- दो बड़े प्रकोप हुए भारत में, पहला 2019 और दूसरा 2022 में
- 20 लाख से अधिक गायें संक्रमित हुईं
गुजरात, महाराष्ट्र व कर्नाटक के संक्रमित मवेशियों से लिए गए नमूने
वर्तमान प्रकोप की जांच करने के लिए टीम ने पशु चिकित्सा संस्थानों के सहयोग से गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान और कर्नाटक सहित विभिन्न राज्यों में संक्रमित मवेशियों से त्वचा की गांठें, रक्त और नाक के नमूने एकत्र किए। उन्होंने 22 नमूनों से निकाले गए डीएनए की उन्नत जीनोम सिक्वेंसिंग का प्रदर्शन किया।
आइआइएससी में पीएचडी छात्र और अध्ययन के सह प्रमुख लेखक अंकित कुमार ने कहा कि सबसे बड़ी चुनौती एक स्थापित एलएसडीवी में जीनोम सिक्वेंसिंग और विश्लेषण की पाइपलाइन कमी थी। टाटू के अनुसार शोध के दौरान हमने कोविड-19 पर और रैबीज वायरस पर किए गए अध्ययन के पैटर्न को अपनाया।
दो अलग-अलग एलएसडीवी वैरिएंट का पता चला
अंकित कुमार के अनुसार इसमें डाटा सीमित था, इसलिए विश्लेषण को मजबूत बनाने के लिए सभी उपलब्ध वैश्विक एलएसडीवी के जीनोम सिक्वेंसिंग को संकलित किया। उनके जीनोमिक विश्लेषण में भारत में दो अलग-अलग एलएसडीवी वैरिएंट का पता चला।
इसमें एक कम संख्या में आनुवंशिक विविधताओं के साथ और दूसरा अधिक संख्या में आनुवंशिक विविधताओं के साथ। कम विविधताओं वाला अनुक्रम आनुवंशिक रूप से 2019 रांची और 2020 हैदराबाद स्ट्रेन के समान था, जिन्हें पहले अनुक्रमित किया गया था।
दूसरा, उच्च विविधता वाले नमूने 2015 में रूस में फैलने वाले एलएसडीवी स्ट्रेन के समान निकले। भारत में इस तरह के अत्यधिक विविध एलएसडीवी स्ट्रेनों की कोई पिछली रिपोर्ट नहीं है। उन्होंने कहा कि इसलिए इतनी सारी आनुवंशिक विविधताएं मिलना आश्चर्यजनक था और इससे बीमारी की गंभीरता को समझा जा सकता है।
1800 से अधिक आनुवांशिक विविधताएं मिली
उन्होंने वायरल जीन में बड़ी संख्या में आनुवंशिक विविधताएं पाईं, जो मेजबान कोशिकाओं से जुड़ने, इम्यून प्रतिक्रिया से बचने और कुशलतापूर्वक प्रतिलिपि बनाने के लिए महत्वपूर्ण है। इसमें 1,800 से अधिक आनुवांशिक विविधताएं मिलीं। इससे संभवतः बीमारी की क्षमता बढ़ गई।
उन क्षेत्रों में मवेशियों में अधिक गंभीर लक्षण विकसित हुए, जहां हमें अत्यधिक विविध स्ट्रेन मिले। पशुधन और आजीविका को खतरे में डालने वाली संक्रामक बीमारियों से निपटने के लिए बेहतर इलाज, टीके और उसमें हस्तक्षेप के मार्ग को प्रशस्त कर सकती है।
यह है लंपी वायरस
लंपी वायरस एक वायरल त्वचा रोग है, जो मुख्य रूप से जानवरों को प्रभावित करता है। यह खून चूसने वाले कीड़ों, जैसे मक्खियों, मच्छरों की कुछ प्रजातियों से फैलता है। लंपी के शुरुआती लक्षण में पशुओं को बुखार हो जाना, त्वचा पर गांठ पड़ जाती है और मौत भी हो सकती है।