
कर्नाटक के शिवमोग्गा जिले के मट्टूर गांव को लोग संस्कृत गांव के नाम से भी पुकारते हैं। इस गांव की आबादी का संस्कृत बोलना तो आपको आश्चर्यजनक लगेगा ही इसके अलावा भी यहां कि एक खासियत और है यहां हर घर में एक इंजीनियर है और इनाडुइंडिया के अनुसार ये सौ फीसदी सच है जो इस गांव को सबसे अलग और आश्चर्यजनक बनाता है।
विशेषज्ञों के अनुसार संस्कृत सीखने से गणित और तर्कशास्त्र का ज्ञान बढ़ता है और दोनों विषय बड़ी आसानी से समझ आ जाते हैं। यही कारण है कि इस गांव के युवाओं का रुझान धीरे-धीरे आईटी इंजीनियर की ओर हो गया और आज यहां घर-घर में इंजीनियर है।
जानकारों का कहना है कि जप और वेदों के ज्ञान से स्मरण शक्ति बढ़ती है और ध्यान लगाने में मदद मिलती है। गांव के कई युवा एमबीबीएस या इंजीनियरिंग के लिए विदेश भी जाते हैं। यहां के कई युवा इंजीनियर विदेशों में कार्यरत हैं। तुंगा नदी के किनारे बसे इस छोटे से गांव के लोग आम जीवन में संस्कृत का प्रयोग नहीं करते, लेकिन इच्छुक व्यक्ति को संस्कृत सिखाने के लिये हमेशा तत्पर रहते हैं।
यहां के इंजीनियर भी विद्यार्थियों की मदद करने के लिये हमेशा तैयार रहते हैं। इंजीनियरों का कहना है कि जप से उन्हें पढ़ाई में मदद मिलती है। शहर की एक आईटी कंपनी में कार्यरत इंजीनियर यदु ने बताया कि जप और वेदों के ज्ञान से गणित बहुत सरल हो जाता है। 10 वर्ष की आयु से गांव के बच्चे वेद सीखना शुरू कर देते हैं। यही कारण है कि यहां के हर परिवार में एक इंजीनियर है।
एक अन्य इंजीनियर मधुकर ने बताया कि तकनीकी रूप से इस गांव के लोग किसी भी मामले में पीछे नहीं हैं। गणित और आयुर्वेद में संस्कृ त का अहम योगदान है। वैज्ञानिक समझ में भी संस्कृत की भूमिका अहम रही है। संस्कृत को हर पहलू से समझने की जरूरत है। संस्कृत की जानकारी से दूसरी भाषाएं विशेषकर कम्प्यूटर विज्ञान की भाषा सीखने में मदद मिलती है। वैदिक गणित का ज्ञान हो तो कैलकुलेटर की जरूरत नहीं पड़ती। आपको बता दें कि देश की एक फीसदी से कम आबादी संस्कृत बोलती है।
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