इतिहास यूं तो हमेशा से ही विवादों से घिरा रहता है, इतिहास का एक हीरो किसी के लिए हीरो होता है तो दूसरी जमात उसकी ऐतिहासिक खामियां ढूंढ कर उसकी छवि खराब करने की कोशिश में लग जाती है। अकबर, राणा प्रताप, सावरकर और गांधीजी तक इसके शिकार रहे हैं। ऐसे में नई पीढ़ी, जो इतिहास की स्कॉलर नहीं है, काफी कनफ्यूज्ड रहती है। ऐसे दौर में पॉजीटिव नजरिए से इतिहास लिखना एक मुश्किल काम है। विष्णु शर्मा ने अपनी किताब ‘इतिहास के गुमनाम नायकों की गौरवशाली गाथाएं’ में ये प्रयास किया है।
जैसा कि टाइटिल है, आज के युवाओं के लिए 80 से 90 फीसदी चेहरे उनके लिए अनजाने ही हो सकते हैं। लेकिन उन्होंने इस देश के लिए, समाज के लिए अपनी जिंदगी की आहुति दी, संघर्ष किया या इतना साहस दिखाया जोकि नामुमकिन के स्तर का था और बदले में उनको गुमनामी मिली। भारतीय इतिहास को लोकप्रिय नायकों में वो शामिल नहीं है। उसकी अलग अलग वजहें हो सकती हैं। ऐसे में विष्णु शर्मा ने अपनी रिसर्च के जरिए ऐसे 25 चेहरे ढूंढे हैं। हालांकि किताब लिखने की शुरूआत बाजीराव मस्तानी मूवी पर एक ब्लॉग को लेकर हुई थी, सो बाजीराव बल्लाल भट्ट को इसमें शामिल किया गया है, लेकिन वो एक आशिक नहीं एक योद्धा के रूप में है।
दिलचस्प बात ये है कि इन चेहरों में आदिवासी, दलित, मुस्लिम, मराठा, राजपूत, बंगाली, पंजाबी सभी तरह के चेहरे हैं क्षेत्र की भी कोई सीमा तय नहीं की गई, कुछ महिलाएं भी हैं, कम्युनिस्ट विचारधारा के भी हैं तो सावरकर से प्रभावित नायक भी। बाजीराव काल से आजादी तक के चेहरे हैं, लेकिन एक नायक आजादी के बाद का भी है।
इन गुमनाम नायकों में एक को भगत सिंह अपना गुरू मानते थे और उनकी फोटो जेब में रखते थे और जो भगत सिंह से चार साल छोटी उम्र में ही फांसी चढ़ गए थे। एक 18 साल की वो लड़की थी, जो बोर्ड टॉपर थी, उसने एक ऐसे क्लब पर धावा बोलकर अपनी जान दे दी, जिसके बाहर लिखा था- इंडियंस एंड डॉग्स आर नॉट एलाउड। एक ऐसा आदिवासी नायक, जिसने जल, जंगल और जमीन का नारा दिया था। एक ऐसा युवक जिसने सबसे बड़े अंग्रेज अधिकारी का गला काट दिया, एक ऐसी विदेशी महिला जिसने भारत का पहला झंडा डिजाइन किया, भारत की नंबर एक यूनीवर्सिटी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस शुरू करने में टाटा की मदद की।
1857 का एक ऐसा नायक, जो 80 साल का था, कई बार अंग्रेजों को हराया, लेकिन जिंदा नहीं पकड़ा गया, उसने अपने एक हाथ से दूसरा काट दिया था। एक ऐसा नायक जिसे भारत के टाइटेनिक कांड के लिए जाना जाता है, तो भारत में सबसे पहले ‘राइट टू रिकॉल’ का आइडिया देने वाले और भगत सिंह, व आजाद के मेंटर क्रांतिकारी की भी कहानी है। एक ऐसा भी नायक है, जिसके बारे में ब्रिटिश अधिकारी ने कहा कि अगर उनकी योजना कामयाब होती तो राष्ट्रपिता गांधी नहीं वो होते। ऐसे तमाम गुमनाम नायकों को इस किताब में समेटा गया है।
लेखक विष्णु शर्मा इतिहास के ब्लॉगर हैं, पत्रकार हैं, इतिहास से नेट क्वालीफाइड हैं, एमफिल कर चुके हैं। इंडियन हिस्ट्री पर उनका काम यूट्यूब से लेकर तमाम बेवसाइट्स पर बिखरा पड़ा है। ये उनकी पहली किताब है, जो बड़ी क्लासों के कोर्स में शामिल करने लायक है। दिलचस्प इतिहास पढ़ने वालों के लिए सहेजने लायक है। दिल्ली के मशहूर प्रभात प्रकाशन ने इसे पब्लिश किया है, आप इसका पेपरबैक 150 रुपए में और हार्डकवर एडीशन 300 रुपए में खरीद सकते हैं। अमेजन पर यह उपलब्ध है, वो भी 25 फीसदी की छूट पर.
Live Halchal Latest News, Updated News, Hindi News Portal