बीएमसी पर कब्‍जे के लिए आखिर क्‍यों मचती है हर दल में होड़, जानिए वजहें...

बीएमसी पर कब्‍जे के लिए आखिर क्‍यों मचती है हर दल में होड़, जानिए वजहें…

मुंबई: देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में बृहन्‍मुंबई म्‍युनिसिपल कारपोरेशन (बीएमसी) का चुनाव महज निकाय चुनाव भर ही नहीं है. आखिर कोई तो वजह हैबीएमसी पर कब्‍जे के लिए आखिर क्‍यों मचती है हर दल में होड़, जानिए वजहें...
जिसकी वजह से हर दल इन चुनावों को जीतना चाहता है और संभवतया इसीलिए यह चुनाव राष्‍ट्रीय सुर्खियों का विषय बनता है. इसमें दिलचस्‍पी का आकलन इसी आधार पर किया जा सकता है कि बीएमसी समेत 10 म्‍युनिसिपल कारपोरेशन की 5,777 सीटों के लिए 21,620 प्रत्‍याशियों उम्‍मीदवार मैदान में थे. हालांकि सभी का ध्‍यान बीएमसी पर है. इसकी सबसे बड़ी वजह इसका विशाल बजट है जोकि किसी भी निकाय बॉडी से ज्‍यादा और यहां तक कि कई राज्‍यों से ज्‍यादा है.
आइए जानते हैं बीएमसी से जुड़े पांच अहम तथ्‍य :
  1. बीएमसी का बजट 37,000 करोड़ रुपये से भी ज्‍यादा है. यह चेन्‍नई, कोलकाता, बेंगलुरु, पुणे और अहमदाबाद जैसे 10 बड़ी निकाय बॉडी के लगभग बराबर है.
  2. कई छोटे राज्‍यों से भी इसका बजट ज्‍यादा है. इस बजट का आधे से भी अधिक हिस्‍सा बीएमसी के तकरीबन एक लाख कर्मचारियों के वेतन और पेंशन में खर्च होता है.
  3. पिछले दो दशकों से शिवसेना का बीएमसी पर कब्‍जा रहा है. शिवसेना ने अपनी राजनीति की शुरुआत भी बीएमसी चुनावों से की है. इसीलिए ये इसका गढ़ रहा है.
  4. बीएमसी चुनाव के माध्‍यम से कारपोरेटर चुनती हैं. इन कारपोरेटरों के पास विधायी शक्तियां होती हैं और जो पार्टी जीतती है, वही मेयर चुनती है. यहां की कार्यकारी शक्तियां कमिश्‍नर के पास होती है जोकि राज्‍य सरकार द्वारा नियुक्‍त होते हैं.
  5. पिछले दो दशकों में पहली बार शिवसेना और बीजेपी ने अलग-अलग चुनाव लड़ा है. चुनाव से पहले दोनों दलों ने बेहद तल्‍खी के साथ साथ छोड़ा और चुनाव लड़ा.
 

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