बाबुओं में कमीशन को लेकर बहस नहीं हुई होती तो दबा रह जाता चारा घोटाला

बाबुओं में कमीशन को लेकर बहस नहीं हुई होती तो दबा रह जाता चारा घोटाला

चारा घोटाले के एक मामले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव सहित 16 लोगों को सीबीआई की विशेष अदालत ने दोषी करार दिया है. 12 साल पुराने इस मामले में सुनवाई के दौरान राजनीतिक उथल-पुथल तो हुए ही, बल्कि कई बड़े राजनेता सलाखों के पीछे भी पहुंचे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस घोटाले का खुलासा दो सरकारी बाबुओं के बीच बहस के बाद सामने आया था.बाबुओं में कमीशन को लेकर बहस नहीं हुई होती तो दबा रह जाता चारा घोटाला
 

दरअसल, हुआ यूं कि 1984 में ही बिहार में चारा घोटाले की शुरुआत छोटे स्तर पर हो चुकी थी. बाबुओं के बीच पैसों और कमीशन बाजी को लेकर तनातनी चल रही थी. दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चारा घोटाले की 30 परसेंट राशि को लेकर चाईबासा में तैनात जिला पशुपालन अधिकारी और रांची के डोरंडा में तैनात पशुपालन निदेशालय के एक सीनियर अफसर में अनबन हो गई.
 

इसकी खबर वेटरनरी इलाके से जुड़े नेताओं को भी मिली. इसके बाद शुरू हुआ नेताओं और बाबुओं में पैसे वसूली का खेल. बड़े अधिकारी और नेता जरुरत के हिसाब से महीना दर महीना पैसा वसूलने लगे. फिर बात आ पहुंची चारा घोटाला में दवा सप्लाई करने वाले सप्लायर तक. पैसों की मांग ज्यादा होने लगी तो घोटाले की बात बाहर आ गई.
 

फिर कोलकाता, रांची, दिल्ली और पटना में बैठे पहले दर्जे के बड़े सप्लायरों ने मामले को सलटाने की कोशिश भी की. लेकिन इसके बावजूद बात नहीं बनी. मामला बढ़ता देख सप्लायरों के राजनीतिक आकाओं ने मामले दबाने करोड़ों की रकम मांगी दी पर मामला सुलझ नहीं पाया और आखिरकार 12 साल से चल रहा घोटाला फूट पड़ा.
 

घोटाले को लेकर राजनीतिक गहमा-गहमी तेज हो गई. इसी बीच पटना के एक बड़े सप्लायर का पोता किडनैप हो गया और उसे खोजने के लिए हुई पहल में मामला नेताओं और बाबुओं के हाथ से निकलकर सार्वजनिक हो गया. बताया जाता है कि चारा घोटाले में एक बड़े सप्लायर ने अपने आकाओं को खुश करने के लिए घोटाले बाजी तो की ही साथ ही पटना म्यूजियम के सामने खास महाल की जमीन पर वाईट हाउस भी बनवा दिया. जो लोगों के नजर में आ गया.
 

फिर 1993 में विधायक दिलीप वर्मा ने विधानसभा में चारा घोटाले का मामला उठाया और धरना भी दिया. उन्हें कई बड़े बाहुबली नेताओं से धमकियां भी मिलने लगी. वे मामले को उजागर करने के लिए विधानसभा में आवाज उठाते रहे. यही नहीं, वकीलों के पास भी दौड़ लगाई.
 

आखिरकार 1996 में चाईबासा थाने में पहला मामला दर्ज हुआ. मामला पटना हाईकोर्ट पहुंचा और सीबीआई को जांच सौंपी गई. परत दर परत सीबीआई ने खुलासे किए और लालू यादव समेत कई बड़े नेताओं मामला दर्ज किया गया.    

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