तंत्र साधना के लिए 2 साल के बच्चे की बलि देने वाले दंपत्ति की फांसी पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है. ईश्वरी यादव और उसकी पत्नी किरण को छतीसगढ़ हाई कोर्ट ने फांसी की सज़ा दी थी. इसके खिलाफ दोनों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है.
मामला दुर्ग ज़िले के रुआबन्धा गांव का है. किरण उर्फ़ गुरु माता और उसका पति ईश्वरी तंत्र साधना करते थे. उनका मानना था कि किसी बच्चे की बलि देने से उनकी तांत्रिक शक्ति और बढ़ जाएगी.
इस काम में उनके कुछ सहयोगी भी थे. इन्हीं सहयोगियों की मदद से उन्होंने 23 नवंबर 2010 को पड़ोस में रहने वाले 2 साल के चिराग को अगवा कर लिया. इसके बाद उन्होंने अपने घर में बच्चे की बलि दे दी.
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शक के आधार पर गांव वालों ने उनके घर पर दबिश दी तो वहां ताज़ा खून से भरा कटोरा मिला. उन्होंने बच्चे के टुकड़े कर के उसे दफना दिया था. उनकी निशानदेही पर नन्हे बच्चे का सिर और धड़ भी बरामद हो गए.
दुर्ग पुलिस ने निचली अदालत में दायर चार्जशीट में बताया कि दोनों पर तंत्र साधना की ऐसी सनक सवार थी कि उन्होंने खुद के तीनों बच्चों को भी बलि के दौरान मौजूद रखा. उनका मानना था कि इससे उनके बच्चों में भी जादुई शक्तियां आ जाएंगी. बलि के दौरान उनके 5 सहयोगी भी वहां मौजूद थे.
2014 में दुर्ग सेशन्स कोर्ट ने कुल 7 लोगों को इस जघन्य अपराध के लिए फांसी की सज़ा दी. दिसंबर 2016 में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने 5 लोगों की फांसी को उम्र कैद में बदल दिया. ईश्वरी यादव और किरण की फांसी को बरकरार रखा गया.
आज सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने दोनों की अपील सुनवाई के लिए मंज़ूर कर ली. कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा. मामले की अगली सुनवाई 28 नवंबर को होगी.
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