‘डिलीवरी से करीब 1 माह पहले मुझे अस्पताल में भर्ती किया गया। सामान्य वार्ड से डॉक्टर ने मुझे हाई रिस्क वार्ड में भेज दिया। पहले तो कुछ समझ नहीं आया, बाद में पता चला कि मेरा थायराइड स्तर सामान्य नहीं है। बीपी भी बढ़ा हुआ है। डॉक्टर ने कहा, डिलीवरी की डेट तब तक तय नहीं की जा सकती, जब तक मेरी जांच रिपोर्ट में सब सामान्य न हो। ये सुनकर घबराहट होना तो लाजमी है। तनाव के कारण मेरा बीपी और ज्यादा बढ़ गया। डॉक्टर ने दवा की डोज बढ़ाई। बाद में सामान्य डिलीवरी की जगह ऑपरेशन के जरिए बच्चे को जन्म दिया।” लखनऊ स्थित मेडिकल संस्थान केजीएमयू के गाइनी विभाग क्वीनमेरी, में भर्ती 30 वर्षीय अनिता यादव ने कुछ यूं अपनी आपबीती बताई। ये हाई रिस्क प्रेग्नेंसी का उदाहरण था। न जाने कितनी महिलाओं को इस स्थिति से गुजरना पड़ता है। आगे जानते हैं, क्या है हाई रिस्क प्रेग्नेंसी और इस दौरान किन जरूरी सावधानियों का ख्याल रखना चाहिए। इस विषय पर बेहतर जानकारी के लिए हमने लखनऊ के क्वीनमेरी विभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष और गाइनोकॉलोजिस्ट डॉ विनिता दास से बात की।
हाई रिस्क प्रेग्नेंसी वो होती है, जिसमें प्रेग्नेंसी के दौरान सेहत से जुड़ी समस्याएं बढ़ जाती हैं। प्रेग्नेंसी में जेस्टेशनल डायबिटीज, एचआईवी, एनीमिया, प्रीक्लेम्पसिया आदि की स्थिति ज्यादा गंभीर होती है। डॉ विनिता दास ने बताया कि ऐसी महिलाओं में हाई रिस्क प्रेग्नेंसी का खतरा ज्यादा होता है, जिनकी उम्र कम है या ज्यादा है। जिन महिलाओं की उम्र 35 से ज्यादा होती है, उनमें जोखिम बढ़ जाता है। वहीं 20 साल या इससे कम उम्र में प्रेग्नेंसी के कारण भी जोखिम अधिक होता है। जिन महिलाओं का पहले गर्भपात हो चुका है, वो भी हाई रिस्क की श्रेणी में आती हैं।
डाइट में शामिल करें जरूरी पोषक तत्व-
आपको बता दें कि वो महिलाएं हाई रिस्क प्रेग्नेंसी की श्रेणी में आती हैं, जिनका बीपी ज्यादा होता है, जिन्हें थायराइड होता है, जो डायबिटीज का शिकार होती हैं। ये सभी समस्याएं, मोटापे के कारण बढ़ सकती हैं। प्रेग्नेंसी में ओवरवेट या मोटापे का शिकार हैं, तो हाई रिस्क प्रेग्नेंसी के लक्षण, शरीर में नजर आएंगे। इस स्थिति में अचानक से बदलाव लाना मुश्किल हो जाता है। लखनऊ के झलकारीबाई अस्पताल की गाइनोकॉलोजिस्ट डॉ दीपा शर्मा, ने बताया कि ऐसे मरीजों को हम सलाह देते हैं कि आप अपनी डाइट पर फोकस करें। हाई रिस्क प्रेग्नेंसी में मीठी चीजों से दूरी बरतें। आयरन, कैल्शियम, फाइबर, हरी सब्जियां, फल आदि का सेवन करें। इस दौरान साबुत अनाज, विटामिन बी आदि का सेवन जरूर करना चाहिए।
बीपी को संतुलित रखना जरूरी है-
डॉ दीपा ने बताया कि हाई रिस्क प्रेग्नेंसी में ब्लड प्रेशर को संतुलित रखना जरूरी है। हॉस्पिटल में हाई रिस्क वार्ड होता है जहां हम ऐसी महिलाओं को अलग रखते हैं, जिनमें हाई रिस्क प्रेग्नेंसी के लक्षण नजर आ रहे हों। कई महिलाएं के मामले, तो ऐसे भी आते हैं जिनकी डिलीवरी डेट पास है और उनका बीपी बढ़ा हुआ है। ऐसी स्थिति में सामान्य डिलीवरी करना मुश्किल हो जाता है। ऐसे मरीजों को हम हर थोड़ी देर में मॉनिटर करते हैं। डिलीवरी के लिए बीपी, 120/80 mm Hg से कम होना चाहिए। डिलीवरी के समय बीपी सामान्य न होने से, शिशु और मां की किडनी प्रभावित हो सकती है।
जेस्टेशनल डायबिटीज होने पर क्या करें?-
प्रेग्नेंसी के दौरान, डायबिटीज होने की स्थिति को जेस्टेशनल डायबिटीज कहा जाता है। इस स्थिति में डॉक्टर, खाने के बाद और पहले डायबिटीज चेक करते हैं। डायबिटीज के स्तर को सामान्य करने के लिए, इंसुलिन की मदद भी ली जाती है। जेस्टेशनल डायबटीज की स्थिति में, जिन महिलाओं को लो-शुगर की समस्या होती है, उनके खून में शुगर की मात्रा बढ़ाकर टेस्ट किया जाता है। वहीं शुगर का स्तर ज्यादा होने पर डॉक्टर मीठी चीजों का पूर्ण परहेज और एक्सरसाइज करने की सलाह देते हैं। आमतौर पर 24 से 28वें हफ्ते के बीच जेस्टेशनल डायबिटीज का खतरा ज्यादा होता है।
हाई रिस्क प्रेग्नेंसी में किन बातों का ख्याल रखें?-
- हाई-फैट डाइट से दूर रहें।
- शुगर ज्यादा है, तो मीठी चीजों से दूरी बरतें।
- एक्सरसाइज को रूटीन में शामिल करें।
- बीपी और शुगर का स्तर समय-समय पर चेक करती रहें।
- तनाव की स्थिति से बचें, इस दौरान पॉजिटिव रहना जरूरी है।
- एंग्जाइटी से बचने का सबसे अच्छा तरीका है, डॉक्टर से बात करती रहें।
- डॉक्टर की सलाह पर सभी जरूरी दवाओं का सेवन करें।
हेल्दी लाइफस्टाइल और जरूरी टिप्स फॉलो करेंगी, तो हाई रिस्क प्रेग्नेंसी की स्थिति से बाहर आ सकती है।