येरुशलम: पूरे विश्व में अपने आतंक का पर्याय बन चुके आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (ISIS) के आतंकी अभी तक हजारों लड़कियों को अपनी हवस का शिकार बना चुके होंगे, लेकिन इन्ही हजारों में एक नाम है नादिजा मुराद का, जिसका नाम अब नोबल पुरस्कार के लिए नामित हुआ है। तो चलिए हम आपको नादिजा मुराद की कहानी बताते हैं, साथ ही एक भी बताते हैं कि आखिर उनका नाम नोबल पुरस्कार के लिए क्यों नामिल हुआ।
नादिजा मुराद ने सहा है बहुत दर्द
एक विदेशी न्यूज वेबसाइट से मिली जानकारी के अनुसार, अगस्त 2014 में ISIS के आतंकियों ने नादिया को उत्तरी इराक में स्थित ताहा (कोचो) गांव से उठा लिया था। उस समय नादिया की उम्र मात्र 19 साल की थी। जेहादियों ने किडनैप के बाद लगातार तीन महीने तक नादिया का रेप किया। उसे रोज कई आतंकियों के हवस का शिकार बनना पड़ता था।
एक दिन नादिया मुराद इन आतंकियों के कब्जे से बचकर भाग निकली। उसके बाद उसने एक ऐसी मुहीम छेड़ दी जो इतना दर्द सहने वाला दूसरा इंसान शायद छेड़ने की हिम्मत न कर सके। आज नादिया 21 साल की है और अपने समुदाय के लिए और आंतक से पीड़ित लोगों की मदद के लिए काम करती हैं।
नादिजा मुराद ने एक इंटरव्यू में बताया कि ISIS के आतंकियों ने उनके आठ भाईयों में से छह का कत्ल कर दिया था और उन्हें उठा कर ले गए थे। वहीं उनकी मां और दो टीनेज बहनों व एक कजिन को मोसुल ले जाते समय आतंकियों ने मार डाला। तीन महीने के दर्दनाक जिंदगी के बाद नादिया भाग गई। इसके बाद वह जर्मनी के एक याजिदी रिफ्यूजी कैंप में मिली।
नादिया मुराद ने एक विदेशी अखबार को दिए इंटरव्यू में ब्रिटेन से याजिदी समुदाय के शरणार्थियों के लिए रिफ्यूजी कैंप की मांग की हैं। उन्होंने बताया कि इस समय ISIS के आतंक की वजह से इस समुदाय के हजारों लोग बेघर हैं। रिफ्यूजी कैंप में वे आतंक के साये में जिंदगी जी रहे हैं। कुछ इराक में हैं तो कुछ जर्मनी में हैं। नादिया की एक बहन जर्मनी के रिफ्यूजी कैंप में हैं तो दूसरी बहन इराक के रिफ्यूजी कैंप में हैं। जबकि दोनों भाई भी इराक में हैं।
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