वट सावित्री व्रत को करवाचौथ के समान ही माना जाता है। इस व्रत को संपन्न कर सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण बचाए थे। यह व्रत सुहागिन महिलाएं, पति की लंबी आयु के लिए रखती हैं। इस व्रत के प्रताप से पति पर आए संकट दूर हो जाते हैं और दांपत्य जीवन में खुशियां आती हैं। इस दिन वट वृक्ष के नीचे पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन सावित्री और सत्यवान की कथा सुनने का विधान है। इस कथा को सुनने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।
वट वृक्ष में भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव का वास बताया जाता है। माना जाता है कि इस वृक्ष की जड़ में ब्रह्मा, इसके तने में विष्णु और ऊपरी भाग में शिव निवास करते हैं। वट वृक्ष की पूजा करने से शनि, मंगल, राहू के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं। वट पूजा से अखंड सौभाग्य और उन्नति की प्राप्ति होती है। यमराज और सावित्री के मध्य शास्त्रार्थ वट वृक्ष के नीचे हुआ था। इसी वृक्ष के नीचे पतिव्रता सावित्री को यमराज से न्याय की प्राप्ति हुई थी। सभी पवित्र वृक्षों में वट वृक्ष की आयु अधिक होती है। इस व्रत में खंडित टहनियों का पूजन न करते हुए संपूर्ण वट वृक्ष का पूजन करना चाहिए। इस व्रत में महिलाएं नए वस्त्र धारण कर सोलह श्रृंगार करती हैं। वट सावित्री व्रत करने से जीवनसाथी पर आया कोई भी संकट टल जाता है।