गुजरात का सियासी तापमान काफी गर्म है. बीजेपी अपनी सत्ता बचाने को बेचैन है, तो वहीं कांग्रेस सत्ता के वनवास को तोड़ने की जद्दोजहद कर रही है. पिछले तीन चुनावों में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को एकतरफा जीत मिली लेकिन इस बार मोदी गुजरात से बाहर हैं और देश के प्रधानमंत्री हैं. पिछले चुनावों में विपक्षी कांग्रेस को बीजेपी के मुकाबले तकरीबन आधी सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. लेकिन इस बार सत्तारूढ़ पार्टी के लिए राह पहले की तरह आसान नहीं है, बल्कि चुनौतियों का अंबार है. यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने दुर्ग को बचाने के लिए खुद ही रणभूमि में उतर चुके हैं.
बीजेपी हुई बेचैन
दरअसल पिछले दो दशक में राज्य में पहली बार ऐसे राजनीतिक हालात बने हैं, कि बीजेपी को सत्ता बचाना टेढ़ी खीर बनता जा रहा है. मौजूदा गुजरात की राजनीतिक हालातों को बीजेपी बखूबी समझ रही है. इसीलिए पीएम मोदी लगातार अपने गृह राज्य गुजरात का दौरा कर रहे हैं. पिछले 12 महीने में उनका 14वां गुजरात दौरा है. पिछले 30 दिन में पीएम मोदी चौथी बार गुजरातजा रहे हैं. बीजेपी नरेंद्र मोदी के बार-बार राज्य में दौरे करवाकर माहौल को अभी से अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है. इसी कड़ी में नरेंद्र मोदी आज गुजरात में बीजेपी की गौरव यात्रा के समापन के मौके पर जनसभा को संबोधित करेंगे.
मोदी CM का चेहरा नहीं
पंद्रह साल बाद सूबे में बीजेपी सीएम का चेहरा नरेंद्र मोदी नहीं होंगे. मोदी-शाह के दिल्ली में आ जाने से राज्य में बीजेपी के पास ऐसा कोई करिश्माई चेहरा नहीं बचा है जो पार्टी और सरकार को उस रुतबे के साथ आगे ले जा सके. विजय रुपाणी के चेहरे को आगे कर बीजेपी गुजरात के रण में उतरी है.
तीन साल में तीन सीएम
पिछले तीन सालों में गुजरात में विजय रुपाणी तीसरे सीएम हैं. नरेंद्र मोदी के 2014 में पीएम बनने के बाद उन्होंने अपनी जगह आनंदी बेन पटेल को गुजरात सीएम की कुर्सी सौंपी थी, लेकिन इस कुर्सी पर ज्यादा दिन वह नहीं रह सकीं. सूबे के बिगड़ते हालात के लिए आनंदी बेन की जगह विजय रुपाणी को सीएम बनाया गया है. सीएम के बदलाना बीजेपी का बैकफुट कदम माना जा रहा है.
दो दशकों का एंटी इंकबेंसी
गुजरात में दो दशक से ज्यादा समय से कांग्रेस सत्ता से बाहर है. राज्य में करीब 18 साल से बीजेपी का राज है. इतने लंबे समय से राज करने की वजह से बीजेपी के प्रति लोगों में नाराजगी बढ़ी. एंटी इंकबेंसी का माहौल बीजेपी के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है.
पाटीदारों के उग्र तेवर
आरक्षण की मांग को लेकर हार्दिक पटेल के नेतृत्व में पटेल समाज के लाखों लोग आंदोलन कर चुके हैं. आंदोलन ने बीजेपी सरकार और राज्य के पटेलों को आमने-सामने ला खड़ा कर दिया था. राज्य में पटेलों की आबादी तकरीबन 20 फीसदी है. इतने बड़े वर्ग की नाराजगी बीजेपी के लिए मुसीबत का सबब बन सकती है.
दलित भी नाराज
गुजरात में लगातार दलित उत्पीड़न के मामले सामने आ रहे हैं. ऊना कांड से नाराज दलित समाज आंदोलन के लिए सड़क पर उतर आया था. राज्य के दलितों ने मरी हुई गाय उठाने से मना कर दिया था. दलितों की ये नाराजगी भी बीजेपी के लिए भारी पड़ सकती है.
तीन युवा आंदोलनकारी बने चुनौती
गुजरात के तीन युवा आंदोलनकारी हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवानी बीजेपी के लिए चुनौती बने हुए हैं. ये तीनों युवा बीजेपी को सत्ता से हटाने के लिए पूरी ताकत लगा रहे हैं. यही वजह है कि राज्य की मौजूदा सरकार के खिलाफ पटेल, दलित और अल्पसंख्यक एकजुट हो सकते हैं. ये तीनों एक साथ आते हैं तो बीजेपी के लिए जीतना टेढ़ी खीर होगा. मौजूदा समय में तीनों बीजेपी से नाराज माने जा रहे हैं.
किसान भी उग्र हुए
गुजरात के किसानों में नाराजगी बढ़ी है. पिछले दिनों गुजरात के कई जगहों पर किसानों ने फसल का उचित मूल्य न मिलने और सिंचाई के लिए पानी न मिलने पर राज्य सरकार के खिलाफ गुस्से का इजहार किया था.
पटेल की जीत से कांग्रेस का बढ़ा मनोबल
गुजरात राज्यसभा चुनाव में कांग्रेसी नेता अहमद पटेल की जीत से पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा है, तो वहीं बीजेपी का मनोबल टूटा. दरअसल कांग्रेस को घेरने के लिए बीजेपी ने सूबे की तीन राज्यसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. कई कांग्रेसी विधायकों ने बीजेपी का दामन थामा तो कई ने क्रॉस वोटिंग की. इसके बावजूद अहमद पटेल राज्यसभा का चुनाव जीतने में सफल रहे हैं.