जानिए कैसे, गुजरात का वह गांव जिसने देश को दिया धीरुभाई अंबानी का नाम...

जानिए कैसे, गुजरात का वह गांव जिसने देश को दिया धीरुभाई अंबानी का नाम…

देश के सबसे अमीर औद्योगिक घरानों के किस्से हम बचपन से सुनते आ रहे हैं। पहले टाटा-बिड़ला की कहानियां होती थीं लेकिन पिछले कई दशकों से अंबानी का एकछत्र राज है। अब अडानी का भी नाम तेजी से सुर्खियों में रहने लगा है।जानिए कैसे, गुजरात का वह गांव जिसने देश को दिया धीरुभाई अंबानी का नाम...
हर साल कुछ अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाएं दुनिया के सबसे अमीरों की फेहरिस्त भी छापा करती हैं जिसमें एशिया के सबसे अमीर लोगों में पिछले कुछ सालों से मुकेश अंबानी ही छाए हुए हैं। चुनावी भाषणों में या सियासी आरोप-प्रत्यारोपों में अंबानी-अडानी अक्सर सुर्खियों में रहते हैं। इस बार भी रहे हैं।

प्रधानमंत्री मोदी पर अक्सर ये आरोप लगते रहे हैं कि उन्होंने बड़े उद्योगपतियों को ही फायदा पहुंचाया है – चाहे नैनो वाले टाटा हों, रिलायंस वाले अंबानी या फिर पोर्ट और पावर वाले अडानी। बहरहाल सियासत, सत्ता और और उद्योगपतियों का नाता कोई नया नहीं है। लेकिन इन नामी गिरामी लोगों की कहानियां ज़रूर दिलचस्प होती हैं।

कैसे ये फर्श से अर्श तक पहुंचे, कैसे ये स्कूटर से ढेर सारी मर्सिडीज़, हेलीकॉप्टर या प्लेन के मालिक हो गए। कैसे बचपन में इन्होंने दिन काटे, किस स्कूल में पढ़े, किस घर में रहे और आज कहां से कहां पहुंच गए।

नेशनल हाइवे पर ही अंबानी का विशाल साम्राज्य दिखा

पोरबंदर से गुज़रते हुए समुद्र के किनारे एक जगह रुक कर हमारे स्थानीय सहयोगी ने उंगली से इशारा किया, ‘वो जो जहाज़ों के बेड़े नज़र आ रहे हैं, वो अडानी के हैं। यहां के बंदरगाहों से लेकर कच्छ के मूंद्रा पोर्ट तक अडानी का दबदबा है। इसीलिए जामनगर और जूनागढ़ वाले ये आरोप लगाते हैं कि उनके बंदरगाहों पर सरकार ध्यान नहीं देती औऱ ज्यादातर ट्रैफिक अब उधर ही जाने लगा है।‘

जामनगर से द्वारका की तरफ चले तो नेशनल हाइवे पर ही अंबानी का विशाल साम्राज्य दिखा। जामनगर रिफाइनरी दुनिया का सबसे बड़ा प्लांट है जहां रोज़ाना तकरीबन साढ़े बारह लाख बैरल तेल बनता है। अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्री की ये रिफाइनरी बाहर से ही भव्य नज़र आती है। साढ़े सात हजार एकड़ में बनी इस रिफानरी में ढाई हजार लोग काम करते हैं।

इससे पहले मुंबई से पुणे के रास्ते में रिलायंस का कई किलोमीटर लंबा साम्राज्य देख चुका था। मुंबई के ऑफ पेडर रोड पर मुकेश अंबानी का 27 मंज़िला 125 अरब में बना शानदार घर भी देख चुका था। गुजरात तो अंबानी का अपना राज्य है, ऐसे में वो कस्बा भी देखने का कौतूहल था जहां अंबानी पैदा हुए, जहां बचपन गुजारा और जहां से चलकर आज इस मुकाम तक आ पहुंचे।

वो विशाल गेट जिसका नाम है – श्री धीरुभाई हीराचंद अंबाणी प्रवेश द्वार

पोरबंदर से सोमनाथ तक समंदर के किनारे किनारे बने नेशनल हाइवे 51 के रास्ते में कई खूबसूरत पड़ाव आए… हिलोरे लेतीं समंदर की लहरें और कई समुद्र तट। जूनागढ़ ज़िले में आते ही हम पहुंचे वहां के एक छोटे से कस्बे चोरवाड़। चोरवाड़ आते ही वहां बीचोंबीच दिखा वो विशाल गेट जिसका नाम है – श्री धीरुभाई हीराचंद अंबाणी प्रवेश द्वार। यहीं से आपको एहसास हो जाता है कि आप अंबानी के गांव में आ गए हैं। चोरवाड़ में अंबानी प्रवेश द्वार के पास ही मानिकभाई काना मिलते हैं।

मानिक भाई बताते हैं कि ये कोरी बहुल इलाका है और करीब 30 हजार की आबादी वाले इस कस्बे में मुख्य व्यवसाय नारियल का है। यहां के दुकानदार से लेकर स्थानीय लोग तक धीरुभाई को ही ज्यादा जानते हैं, विजयभाई रुपाणी या अमित भाई शाह को नहीं जानते। लेकिन नरेन्द्र भाई मोदी को ज़रूर पसंद करते हैं। धीरुभाई ने यहां मंदिर से लेकर पार्क तक और स्वास्थ्य केन्द्र से लेकर स्कूल तक बनवाया है।

पहले चोरवाड़ गांव मछुआरों का गांव होता था, अब यहां सभी बैंक हैं, बाज़ार है और तमाम पेशे के लोग रहते हैं। समुद्र तट खूबसूरत है। 1930 में जूनागढ़ के नवाब ने यहां गर्मियों में रुकने के लिए एक शानदार महल बनवाया था। ‘दरिया महल’ के नाम से मशहूर यह किला इतालवी और मुगलकालीन वास्तुकला की एक मिसाल भी है जिसे 1974 में सरकार ने अपने अधीन कर एक रिजॉर्ट में तब्दील कर दिया। जाहिर है पर्यटन के नज़रिये से चोरवाड़ का ये दरिया महल सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र बन गया है।

धीरुभाई अंबानी ने बचपन इसी गांव में गुज़ारा

धीरुभाई अंबानी ने बचपन इसी गांव में गुज़ारा। यहीं उनका पुश्तैनी घर है। गांव में जूनागढ़ रियासत की कुछ हवेलीनुमा इमारतें आज भी दिखती हैं – कुछ बदहाल तो कुछ खंडहर की शक्ल में। लेकिन अंबानी प्रवेश द्वार से कुछ ही दूर पर एक पतली सी सड़क जाती है धीरुभाई के उस घर में जहां उन्होंने बचपन गुजारा। अंबानी परिवार ने यहीं एक बेहतरीन स्वास्थ्य केन्द्र बनवाया है जिसमें स्थानीय लोगों का इलाज मुफ्त होता है। धीरुभाई का घर अब पर्यटकों के लिए स्मारक में तब्दील कर दिया गया है – धीरुभाई अंबानी मेमोरियल हाउस।

2002 में धीरुभाई के निधन के बाद जब मुकेश और अनिल अंबानी के बीच दूरियां बढ़ीं, दोनों अलग हुए तो 28 दिसंबर 2011 को मां कोकिलाबेन के साथ पिता की याद में बने इस मेमोरियल के उद्घाटन के मौके पर एक बार फिर पूरा परिवार एक साथ आया। उनके पारिवारिक पुरोहित रमेशभाई ओझा ने पूरे परिवार को एक साथ पूजा करवाई।

चोरवाड़ के लोगों के साथ साथ यहां आने वाले हर सैलानी के लिए इस सबसे अमीर औद्योगिक घराने की यह धरोहर अब एक पर्यटन स्थल है। यहां आप अंबानी परिवार के बचपन से लेकर अबतक की पूरी कहानी, उतार चढ़ाव और व्यावसायिक बुलंदियों तक पहुंचने का पूरा सफ़रनामा चित्रों की विशाल गैलरी में देख सकते हैं। उनके बरामदे, उनके कमरे, अतिथि कक्ष, रसोईघर से लेकर शौचालय और उस दौर के फर्नीचर से लेकर बरतन तक। यहीं एक सोविनियर शॉप भी है जहां अंबानी परिवार से जुड़ी कुछ यादगार चीजें बिकती हैं – टी शर्ट, कप, मग, तस्वीरें आदि।  

अंबानी परिवार की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वो अपनी जड़ों को नहीं भूलते

यहां से निकलते हुए सुरक्षागार्ड ने सलीके के साथ एक पुस्तिका दी और बताया कि कैसे यहां बीच बीच में अंबानी परिवार के लोग आते हैं और इस परिवार की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वो अपनी जड़ों को नहीं भूलते। आज भी जब यह परिवार यहां आता है तो चोरवाड़ के लोग उनसे बेझिझक मिल सकते हैं और अपने मन की बात कहते हैं।

चोरवाड़ से निकलते वक्त सड़क के दोनों किनारों पर दूर दूर तक नारियल के हज़ारों पेड़ नज़र आते हैं। जाल लिए कुछ मछुआरे भी दिखते हैं। यहां चुनावी सरगर्मी ज़रा भी नहीं नज़र आती। अंबानी के गांव से निकलते वक्त उनपर बनी मणि रत्नम की फिल्म ‘गुरू’ भी याद आती है। ‘गुरू’ में अंबानी का फिल्मीकरण बेशक किया गया हो लेकिन अपने व्यवसाय के साथ साथ अंबानी ने कैसे कला, संगीत और नृत्य जैसे अपने शौक को अपनी ज़िंदगी के साथ जोड़कर रखा उसकी मिसाल कोकिलाबेन भी हैं, नीता अंबानी भी और टीना अंबानी भी।

मुझे कोकिलाबेन का वो इंटरव्यू याद आया जो उन्होंने तीन साल पहले अपने अस्सीवें जन्मदिन पर दिया था। इसमें वो जामनगर से शादी के बाद चोरवाड़ आने, धीरुभाई के पिता हीराचंद जी की खेतीबाड़ी और बैलगाड़ी से सफ़र के साथ साथ यमन के शहर एडेन में रह रहे अपने पति धीरुभाई को याद करती हैं।

वो बताती हैं कि कैसे एडेन में धीरुभाई ने अपनी पहली काली कार खरीदी और कैसे चोरवाड़ में बैलगाड़ी से चला उनका ये सफ़र आज दुनिया की सबसे खुशकिस्मत पत्नी और मां तक पहुंच गया। हम सोमनाथ की तरफ बढ़ रहे थे और सड़क के एक किनारे समंदर की लहरें किनारों से टकरा कर हमारा ध्यान अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रही थीं।

 

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